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विधानुशासन
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से चमकने वाली बिजली की ज्याला से सहश्र गुण अधिक प्रकाश रखने वाली है। देवलोग जिसकी बहुत भक्ति से पूजन करते हैं। तत्काल लिखे हुवे पारिजात पुष्प के सामन जिसका शरीर सुन्दर है और सदा प्रसन्न मुखवाली पद्मावती देवी मेरी रक्षा करे ।
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विस्तीर्णे पद्म पीठे कमल दल निवासोचिते काम गुप्ते लां तां ग्रां श्री समेते प्रहसित वदने नित्य हस्ते प्रहस्ते रक्त रक्तो ज्वलगि प्रति वहसि सदा वाग्भवेकाम राजे हंसा रूढ़े सुनेत्रे भगवति यरदे रक्षमां देवी पद्म लाल और उज्वल अंगवाली कमल के फूलों में रहने वाली मुस्कराती हुई मुँहयाली हे पद्मे देवी आप मेरी रक्षा करें। एक विशाल चुतष्कोण पीठ पर दस दल कमल बनाया जावे। इसके पहिले दल में कामगुप्ते दूसरे में लां प्रहसित वदने प्रहस्ते आठों में श्री नवमे में रक्ते १० व में रक्तोज्वालंगी लिखे और हरे एक दो पत्तों के बीज में ऐं नीचे और क्लीं ऊपर ऐसी हे पद्मा देवी आप मेरी रक्षा करें ।
षटकोण चक मध्ये प्रणव वरयुत' वाग्भवे काम राजे हंसा रूढे स बिन्दे विकसित कमले कर्णिकाग्रे निधाय नित्ये क्लिन्ने मदाने द्रवइति सततं सां कुशे पाश हस्ते ध्यानात्संक्षोभकारि त्रिभुवन वशकृत रक्षमां देवी पद्मे
॥ ११ ॥
हंस वाहिनी, बिन्दु सहित अंकुश और नागपाश लिये हुये, ध्यान से शत्रुओं में क्षोभ पैदा करने याली, त्रिभुवन को यश करा देने वाली, नित्ये क्लिन्ने मदार्द्रे मद स गीली स्त्री को द्रवित कराती है। ऐसी है पद्मावती देवी मेरी रक्षा करो। छ कोण चक्र में ईं ऐं क्ली हंस वाहनी खिले हुवे कमल पर बैठी हुई कर्णिका में ध्यान करें ।
जिव्हाग्रे नासिकांते हृदि मनसि द्दशोः कर्णयोर्नाभिपद्म
स्कंधे कंठे ललाटे शिरसि च भुजयो पृष्ट पार्श्व प्रदेशे । सगो पांग शुद्धा अतिशयभुवने दिव्य रूपं स्वरूपं
ध्यायामः सर्वकाले प्रणवलय युतं पार्श्वनाथैक शब्द ॥ १२ ॥
सम्पूर्ण अंग और उपांगो में शुद्ध होकर अर्थात अंग न्यास करन्यास करके शुद्ध होकर जीभ की नोंक पर नाक की अणी पर, अपने हृदय में मन में, आंखो में, कानों में नाभि में, दोनों कंधों में, कंठ में ललाट में, सर पर भुजाओं में पीठ पर दोनों बगलों में और सर्वदा दिव्य स्वरूपी समभवशरण में विराजे हुवे पार्श्वनाथ स्वामी का अपने उपरोक्त शरीर के अंगों में ॐ पार्श्वनाथाय नमः का ध्यान करना चाहिये ।
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OBPSPSPSP/51959 २०५ PSP595959529595