SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 209
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ SASARASTRISTOTHRISIOS विधानुशासन PATRI50150151215105 बचाने के लिये उनपर स्वर्गीय और दे दीप्यमान येडूर्य नामक रत्न से जिसका इंडा बना हुआ है। झालर में लगी हुई मणियों की मधुर संगीत ध्वनि जिसमें सुनाई दे रही है। ऐसे यज़ नाम के हीरे के बने हुए छत्र लेकरखड़ी हुई कमाल हस्ता लक्ष्मी देवी हमारे डर को दूर करें। भंगी काली कराली परिजन सहिते चंडि चामुंडि नित्ये क्षां क्षीं २ क्षण क्षत्त रिपु निवहे ही महामंत्र वश्टो भ्रां भ्रीं यूं भें भ्रसंगे भृकुटि पुट तटी त्रासितोदाम दैत्ये झं झीं झुंझें झं: चंडे स्तुति शत मुरवरे रक्षमा देवि पने ॥४॥ भुंगी काली कराली इत्यादि नाम की सहेलियों से युक्त चंड़ी अर्थात् सिर पर बैठी हुई चतुर्भजा क्रोध से लाल और चामुंडा अर्थात् सिंह पर विराजमान आठ भुजा याली पीले रंगयाली क्षां क्षीं झू क्षे क्षः इन बीजों से बंधी हुई शत्रु समुदाय को जिसने घायल कर दिया है ह्रीं मंत्र से साधक के यंश में होने सीलभां भी सवयो अनी त्योगी (भृकुटी) से कमठ नाम के दैत्य को डरानेवाली और झांझी झू झः इन पांच बीजाक्षरों से बहुत भयंकर दिखने वाली भगवान श्री पार्श्वनाथजी की स्तुति हे पद्मे देवी आप मेरी रक्षा कीजिये। चं चत्कांची कलापे स्तन तट विलुठतार हारावली के प्रोत्फुल्लत्पारिजात द्रुम कुसुम महामंजरी पूज्य पादे द्रां ह्रीं क्लीं ब्लू समेते भुवन वशकरी क्षोभिणी द्राविणी त्वं आं एँ उ पो हस्ते कुरू कुरू रक्षा मां देवी पये ॥५॥ जिसकी करधनी (कनगती) खूब चमक रही है छाती पर अनेक प्रकार के हार शोभा दे रहे हैं, विकसित कल्प वृक्ष के फूलों की मंजरी से जिसके चरण कमल पूजा योग्य हैं और द्रा द्रीं यानी ब्लूं सः इन बीजों से युक्त सम्पूर्ण जगत को वश करा देने वाली शत्रुओं में अशान्ति फैलानी याली, उनको भगाने वाली, आं ऐं ॐ रूपी कमल हाय में लिये हुवे जिसके मंत्र में कुरू कुरू यह दो पद है ऐसी है पद्मे देवी आप मेरी रक्षा करें। लीला व्यालोल नीलोत्पल दुलनयन प्रज्वलद्वाडयाऽग्नि घुय्यज्वाला स्फुलिंग स्फुर दर निकरोदा चकाग्र हस्ते हां ह्रीं हूं हः हरंती हर हाह हर ह ह हूंकार भीमक नादे पने पद्मासनं स्थे व्यपनय दुरितं देवि देवेन्द्र वंधे ॥६॥ अपने आप कुछ कुछ हिलने वाले नीलकमल के पन्ने के समान जिसकी आँखे हैं, वइयानल से निकलने वाली ज्वालाओं की चिनगारियों से जिसके अस्त्रचमक रहे हैं और जिसके हाथ में भयंकर SSIOSRISCISIOSOISTOTE २०३PISTRISTIOTECTECISCIPES
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy