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________________ やりですですわ विधानुशासन ॥ पद्मावती स्तोत्र ॥ 9595952950595 श्री मङ्गीर्वाण चक्र स्फुट मुकुट तटी दिव्य माणिक्य माला ज्योति ज्याला कराल स्फुरित मकारिका यृष्ट पादार विन्दे व्यायो रुल्का सहस्त्र ज्वलदनल शिखा लोलपाशां कुशादये आंहीं मंत्र रूपे क्षपित कलि मलं रक्ष मां देवि पद्ये ॥ १ ॥ हे व्याघ्र वाहिणी ! आं क्रों ह्रीं मंत्र रूपिणी पद्मावती आप मेरी रक्षा कीजिए। भावनासुर नागकुमार आदि देवों के समूह जिनके वश में अणिमा, महिमा, गरिमा, लघिमा प्राप्ति प्राकाम्य इशत्व वशित्व ऋद्धियाँ है, वे आपके चरणों पर अपना सिर रखकर नमस्कार करते हैं। उसके मुकुटों का अग्रभाग जिनपर लाल माणिक्य की मकरा कृती बनी हुये ये आपके चरणों में देते देते घिस गये हैं। आपके हाथ में नागपाश अंकुश हजार उल्कापात के समय में होने वाले प्रकाश से चमक रहे है और आपने सम्पूर्ण कलियुग का पाप नष्ट कर दिया है। भित्वा पाताल मूलं चल चल चलिते व्याल लीला कराले । विधुद्दंड प्रचंड प्रहरण सहितै सदुभुजै स्तजयंती दैत्येन्द्र क्रूर दष्ट्रा कट कट घटिते स्पष्ट भीमाट्टहासे मायाजी भूत माला कुहरित गगने रक्षमां देवि पद्मे पाताल को फोड़कर बहुत फूर्ति से ऊपर निकलने वाली, अपने चारों तरफ सर्पों की क्रीड़ा से भंयकर मालूम देने वाली बिजली, के समान भयंकर शस्त्र सहित अपनी भुजाओं से कमठ नामक दैत्य को डराती हुई, जिसके मुँह से दाँत पीसने की भयंकर आवाज निकल रही है, जिसके भयंकर हास्य की आवाज बहुत दूर तक स्पष्ट सुनाई दी जा रही है, अपनी माया से निर्मित मेघों का घटा से जिसने सारा आसमान छालिया है ऐसी है पद्मावती देवी आप मेरी रक्षा कीजिये । ॥ २ ॥ कूजोत्को दंड कांडोडमरू विधुरिता क्रूर धोरोप सर्गे दिव्यं वज्रात पत्रं प्रगुण मणि रणत किंकिणी कान रम्यं भास्वद्वै दंडं मदन विजयिनो विभ्रती पार्श्व भत्तुः सा देवी पद्महस्ता विराटयतु महा डामरं माम कीनम् ॥ ३ ॥ इस श्लोक में चतुर्भुजादेवी का वर्णन है। एक हाथ में ऐसा धनुष लिया है जिसकी छोरी टंकार कर रही है। दूसरे हाथ में बाण है। एक हाथ ऊँचा किया हुआ है और उसमें डमरू लिया हुआ है इन तीनों भयंकर दिखने वाली (कामदेव को जीतने वाले श्री पार्श्वनाथ भगवान को ) जय सिंह व्याघ्र इत्यादि भयंकर प्राणियों के आक्रमण से और वज्रपात अग्नि वर्षा इत्यादि नैसर्गिक उत्पातों से やすやすとちた P6950 २०२P/5101 5959595
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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