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CASTORISTRISEXSIOS विधानुशासन PADOTAOISTRISTORSCIEN
दिक्ष विदिक्ष कमशो जयादि जंभादि देवता चिलिरवेत प्रणव त्रिमूर्ति पूर्वा नमोतंगा मध्य रे रवांते ॥५॥
आया अधाय विजया तथा जिताचा ऽपराजिता देव्याः
जंभा मोहा स्तंभा स्तंभिन्यो देवता ह्येताः ॥६॥ फिर उसके अगले कोष्टक की दिशाओं में आदि में ई ही तथा अंत में नमः लगाकर जया आदि और विदिशाओं में ज़ुभा आदि देवियों को लिखे तथा विजया अजिता अपराजिता Mभा मोहा स्तंभा स्तंभिन्यै देवियों को लिखे ।
तन्मध्ये दलांभोज मनंग कमला भियां विलिरवे च च पद्म गंधा पद्मास्यां पद्यमालिकां
॥७॥
मदनोन्मादिनी पश्चात कामोद्दीपन संलिका आलिवेत् पद्म वरिट्यां त्रैलोक्य क्षोभिनी ततः
॥८॥
ततो ह्रींकार पूर्वोक्ता नमः शब्दावसानगा अकारादि हकारांतान केशरेषु नियोजयेत्
॥९
॥
ॐ ह्रीं क्षा प नमः प्राच्यामों ह्रीं क्षी या नमः क्रमात
ॐ ह्रीं दुं व नमः पश्चादों ही क्षौं ती नमो लिरवेत् ॥१०॥ इसके बीच में एक आठ दल का कामल बनावे जिसकी पखडियों में पूर्वादिक्रम से ॐ ह्रीं अनंग कमलायै नमः ॐ ह्रीं पद्म गंधायै नमः
ॐ हीं पद्मास्यायै नमः ॐहीं पद्मामालायै नमः ॐ ह्रीं मदनोल्मादिन्यै नमः ॐहीं कामोद्दीपनाय नमः ॐ ह्रीं पद्म वर्णाय नमः ॐ ह्रीं त्रैलोक्रा सोभिण्टौ नमः और उस कमल की कर्णिका में अ कार से हकार तक सब अक्षर लिखे फिर उस कमल की चारों दिशाओं में क्रम से
ॐ ह्रीं क्षां प नमः ॐ ह्रीं क्षीं मानमः ॐ ह्रीं सूव नमः ॐ ह्रीं क्षौं तीनमः
॥११॥
एतत्य पद्मावती देव्या भवेद्वक चतुष्टयं
पंचोपराचारतः पूजां नित्यमस्या करोत्विति यह चारों पद्मावती देवी के मुख है। उसका पूजन पाँचो उपचार से नित्य करना चाहिये। CASIORCISIOMSIRIDIPASTOT5 १९६ HTTETSIDESIESTETRIOTES