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विधानुशासन 95959595
भूतोरण शाकिन्यो ध्यानेनानेन नोपसर्पति अपहरति पूर्व संचित मपि दुरितं त्वरित मेवेह |
भूत सर्प शाकिनी वगैरह इस ध्यान करने वाले के पास आकर कोई प्रकार का उपसर्ग नही कर सकती और पूर्व संचित पाप भी सब शीघ्र नष्ट हो जाते हैं। इति सकली करणं
चतुरस्रं विस्तीर्ण रेखा त्रय संयुतं चतुर्द्वारि विलिखेत् सुरभि द्रव्यैर्यत्रमिन्द हेम लेखिन्या
॥ १५
इस यंत्र को सोने की कलम से सुगंधित द्रव्यों से चौकोर विस्तीर्ण तीन रेखा सहित तथा द्वार वाला बनावे 1
धारणेद्रायनमोऽधः उदनाय नमस्तथोर्द्धउदनाय पद्म उदनाय नमो मंत्रान् वेदादि मायाधान,
प्रविलिख्यैतान क्रमशः पूर्वादिद्वार पीठ रक्षार्थ दश दिक्पाल लिखेदिंद्रादीन प्रथम रेखांते
॥ २ ॥
॥ ३ ॥
ॐ लं इद्राय नमः ॐ आग्नेय नमः ॐ शं यमाय नमः ॐ षं नैॠत्येनमः ॐ वं वरुणाय नमः ॐ पं पथनाय नमः ॐ यं वायकै नमः ॐ सं कुबेराय नमः ॐ हं ईशानाय नमः ॐ ह्रीं अधछ्दनाय नमः ॐ ह्रीं ऊर्ध्वछदनाय नमः
दशादिक्पाल स्थापन मंत्र:
इसको आसन की रक्षा के लिए पूर्व आदि द्वारों पर क्रमशः लिखकर प्रथम रेखावाला के अंत में निम्रप्रकार से दशदिक्पालों को लिखे । उन मंत्रों के पश्चात उससे अगले कोठे में दशों दिशाओं में निम्र मंत्र लिखे ।
लं रंशं षं वं पं सं हं वर्णान स. बिंदु कानष्ट दिक्पति समेतान् प्रणवादि नमोंतगतानो ही मद्य ऊर्ध्व वदन संज्ञे च पूर्व में इन्द्र के वास्ते लं आग्नेय दिशा में अग्निद्र के लिये रं दक्षिण दिशा में (यम के लिये शं) नैऋत्य कोण के लिए षं और वं वरूण कोण के लिए पश्चिम के लिये पं वायू कोण के लिये सं उत्तर दिसा के लिये और हं ईशान के लिये है उ पहले नमः अंत में लगाये तथा पाताल व आकाश के लिये ही लगाये ।
9595969593_१९५ P/5951950 らんちゃらです
॥ ४ ॥