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________________ SOSIATERISRISIOSSIOS विद्यानुशासन 3505121510050SERIES ॐ ह्रीं नमोस्तु भगवांत पद्मावति च त्यनेन मंत्रण कुयाद् । ह्वानादीनु पचारान्यं च पद्माया ॥१२॥ आह्वानन स्थापन सन्निधिकरण पूजन और विसर्जन को पंडितों ने पंचोपचार पूजन कहा हैं। आह्वाननं स्थापनं देव्या सन्निधिकरणं तथा पूजां विसर्जनं प्राहु: बुंधा:पंचोपचारकं पूजन के समय इस मंत्र से आह्वानन करे। ॥१३॥ ॐ ही नमोस्तु भगवति पद्मावति ऐहि ऐहि अवतरावतर संयोष्ट आह्वाननं तिष्ट द्वितयं टांत द्वितयं संयोजयेत् स्थितिकरणे सन्निहिता भव शब्दं मम वषट संनिधिकरणे ॥१४॥ ॐ ह्रीं नमोस्तु भगवति पद्मावति ऐहि ऐहि तिष्ट तिष्ठ ठः ठः स्थापनं ॐ ह्रीं नमोस्तु भगवति पद्मावति ऐहि ऐहि मम सन्निहितो भव भव वषट ॐ ह्रीं नमोस्तु पद्मावति गंधादीन गृह - गृह ॐ हीं नमोस्तु भगवति पद्मावती स्वस्थानं गच्छ गच्छ जः जःजः विसर्जनं ।। गंधादीन गृह गृहेति नम पूजा विधान के स्वस्थानं गच्छ गच्छेति जः स्त्रिः स्यात्तद्विसर्जनं । ॥१५॥ पूजन के समय गंधादीन् गृह गृह्ण नम कहे तथा विसर्जन के समय स्वस्थानं गच्छ गच्छ तीन यार जः कहे। पन्नगाधिप शेखरां विपुलाऽरुणां बुज विष्ट कुकुटोरग वाहनामरुम पभां कमलाननां ॥१६॥ मस्तक पर नागराज वाली अत्यंत लाल कमल के आसन वाली कुर्कुटनाग के वाहन वाली रक्त कांतियाली कमल के समान मुखथाली । अंबकां वरदां कुशायत पाश दिव्य फलांकितां चिंतयेत् कमलावती जपतां सतां फल दायिनी ॥१७॥ वरद अंकुश बंधेहुए नागपाश और दिव्यफल सहित हाथों वाली जपने वालो को सदा फल देने वाली माता पद्मावती का ध्यान करे। SSCI50151050505IDTE १९७ PISTRISTOTSIDASIRISTRITICIES
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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