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________________ PPPM विधानुशासन 959595959595 पुमांसो हुं वषट फट् स्वधाप्रभृति पल्लवाः ते नपुसंक लिंगाः स्युर्येषामते नमः पदं ॥ ३१ ॥ हुं वषट फट घे थे और स्वाहा आदि पल्लव जिन मंत्रों के अंत में होते हैं यह पुल्लिंग मंत्र होते हैं। और नमः अंत वाले मंत्र नपुंसक मंत्र होते है। स्त्री मंत्रान्नाम पध्वंसे पुं शुभेषु च कम्र्म्मसु मारणो च्चाटनाधेषु प्रयुंजीत प्रयोगवित ॥ ३२ ॥ स्त्री मंत्रों को पाप नष्ट करने में प्रयोग करे पुरुष मंत्रों का प्रयोग शुभ कर्म मारण उच्चाटन निविर्षीकरण और वशीकरण में करे । विषापहारिषु मंत्रान् वश्योच्चाटनयोरपि । स्यान्नपुसंक मंत्राणां प्रयोगः शेष कर्मसु ॥ ३३ ॥ निर्विषीकरण वशीकरण और उच्चाटन कर्म में पुरूष मंत्रों का प्रयोग करे और शेष कर्मों में नपुंसक मंत्रों का प्रयोग करे। आग्नेयाः सौम्याद्वांत मल्यंत ते पुन द्विविधा नेत्राः प्रणवात्याग्नि वियत्प्रायाः अपि तेस्युराग्नेयाः 1138 11 उन मंत्रो के फिर दो भेद हैं । आग्नेय और सौम्य प्रणव हैं और अग्नि और आकाश स्वाहा बीज वाले अग्नि मंत्र कहलाते हैं। अन्ये सौर्य सौभ्वानेव फट् अंता च वदंति चाग्नेयात् आग्नेयानामेव स्यात् सौम्यत्वं नमो अंतत्वे ॥ ३५ ॥ दूसरे आचार्य सौर्य बीजों को सौम्य और फट् अंत वालों को आज्ञेय कहते हैं। आग्नेयों के ही अंत में नमः लगा देने से वह मंत्र सौम्य हो जाता है। मारणोच्चाटना येषु मंत्र माग्नेय मादिशेत सौम्यं शांती व शीकृत्यै पौष्टिकादिक कर्मणि ॥ ३६ ॥ मारण उद्घाटन आदि में आग्नेय मंत्र बतलाये शांति वशीकरण और पौष्टिक आदि कर्मों में सौम्य मंत्र बतलाये । こちでらでらでらでらでらでらでらでら
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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