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________________ 95959595952 विधानुशासन 959595959 ॐ नमो भगवति आम्रकुष्मांडी सर्वमुख रंजिनां सर्व मुख स्तंभिनी हुं फट स्वाहा । मुख वश्या ॐ नमो भगवति अनंत वासुकि तक्षक कर्कोट पहा महापद्म शंखपाल कुलिक अष्टौ महा नागराज कामनी अनंत काले किलि स्वाहा वासुकि काले किलि स्वाहा तक्षक काले किलि स्वाहा कक्कटक काले किलि स्वाहा पह्न काले किलि स्वाहा महापद्मा काले किलि स्वाहा शंखपाल काले किलि स्वाहा कुलिक काले किलि स्वाहा क्षिप ॐ स्वाहा जयाय स्वाहा विजया स्वाहा । सर्वनिर्विष मंत्र : अर्थार्द्ध त्रिविधि प्रवक्ष्यामि पूर्व मे लक्षंजपेत् पश्चात त्रिसंध्यवा विशंतिवारं जपेत अपरिमितं कुर्यात् आचाम्लशनः एक भुक्तोवा पक्षीतप फलं भवति । 1 इस मंत्र को प्रातः दोपहर और और सायंकाल के समय बीस बीस बार अपरिमित दिनों तक जपे उस समय केवल पीने योग्य द्रव्यों का ही भोजन करता रहे। इसप्रकार के भोजन को दिन में एक बार करने से पन्द्रह दिन के तप का फल होता है। आचाम्ल वृद्धि रत्न प्रयोपयुक्तः यमनियम परायण अभिनव वृत ब्रह्मचारी भूवोश्च (श्रय) विना क्षीर नीराश्रपेण चैत्यालये वा नदी तीरेचा समुद्र तीरेवा पर्वताग्रे वा विविक्त देशे आम्रकुष्मांडी सुरी देवी सव्वालंकार भूषिता तस्य पुत्र एकैक द्वितीय पार्श्वे स्थितः शीर्ष शुक्ल पक्ष प्रति पद मारभ्य आचाम्लासन एकभुक्तपित: अहंत शौर्ययो पूजां कृत्वा त्रिसंध्यं गंध पुष्प धूपादि पंच बलिं दद्यात्स उतरत्र त्रिरात्रोपेतं पौर्णमास्य महद्भगवतो उत्तर पूजां कृत्वा अष्टोत्तर सहस्त्रं जपेत् पश्चात जाति पुष्प सहस्त्र सं गृहय अर्हत प्रतिमा पाद मूले प्रत्येकं निक्षिपेत् अष्ट सहस्त्रा जपेत् ततः सिद्धि र्भवति दिनं प्रति पूजां कृत्वा अर्ध दद्यात् अतः पश्चात भगवत्याः पूजां करोति च साधु भोजनं दद्यात् पश्चात् आचार्य पूजयेत् ॥ साधक इसप्रकार सम्यकदर्शन- सम्यकज्ञान् और सम्यकचारित्र से युक्त होकर अहिंसा आदि नियमो तथा शौच सन्तोष आदि नियमों से जगा हुआ नवीन व्रत लेकर ब्रह्मचारी होकर आश्रय के बिना ही दूध और जल के सहारे से चैत्यालय, नदी के किनारे समुद्र के किनारे, पर्वत के आगे भाग में या किसी एकान्त प्रदेश में इस मंत्र का साधन करे। सब आभूषणों से भूषित आम कुष्मांडी देवी की ऐसी मूर्ति बनावे कि उसमें दोनों तरफ एक-एक पुत्र खड़ा हुआ हो। इस अनुष्टान को शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा से आरंभ करे, दूध और जल का भोजन केवल एक समय करे। भगवान अर्हत 959595252595P5R150595 596959
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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