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________________ SAS125512851015015I05 विद्यानुशासन 7510052152519STOYSI ॐ ह्रीं क्ष्मः ठः नमः नमः ॥ मंत्रोद्धार ॐ हूं ह्रौं हैं 3 हैं ह्रौं स्वाहा उँ ह्रीं क्ष्मं ठः नमः स्फ्रां आम्र कुष्माडिनी नमः इत्यसो ही माम कुष्मांडीनि इति पंचापचारकं सुयोज्यो मंत्राविभौयक्षा: मूलविद्यामिया मुक्तं ब्रह्मचारी नरोजपेत गदास्नान विशुद्धः सननित्यब्रह्म चायपि इत्यादि स्तों आम कुष्माडिनी सहित पांच उपचारों का मंत्र है। यक्षणी के इन दोनों स्तोत्रों को भली प्रकार योग्य स्थल पर लगाना चाहिये। इस मूलमंत्र को ब्रह्मचारी पुरुष जपे अथवा बिना ब्रह्मचारी भी प्रतिदिन स्नान से शुद्ध होकर जपे। जपेन्मत्रंम मुं मंत्री लक्षं यक्ष्या पुरः स्थितः अशोके फलके तस्य लिरिवताया पुरोथवा मंत्री यक्षिणी की मूर्ति को निम्नलिखित लक्षणों से युक्त अशोक वृक्ष की तखती पर या पत्र पर लिखकर और उसके सामने बैठकर एक लाख जप करें। मंत्रोद्धारः यक्षेश्वरी मंगल भूरूहाणामंगैर शेष रूप शोभितस्य आम्रस्य कुष्मांड फल प्रसूते रध्यासिता कांचन पादवेदी ॥१॥ आरूढ़ जांबूनद सिंह पीठा हरिन्मणि श्यामल देहः कांतिः नात्यु ट्रिते हेम निपादपीढे विन्यसत सो तरपाद पद्मा ॥२॥ डिंडीर पिंडादीक पारेण छत्रेण मुक्त मणि भूषितेन मुरवेन्दु मे या पज्जितेन संस्थे व्यमाना रजनी श्वराणां ॥३॥ सविभ्रमं यक्ष विलासिनीभिर्महु महु महुश्शामर मारूतेन मंदेन पार्श्वदय वर्तनीभि रमंद मांदोलित कुंतला लि: ॥४॥ देव्याः पदांभोरुहयोर्द्धयस्टा लाक्षा रसादिः पुनरक्ति मेलि निरंतरं भक्तजनानु राग रसेन साक्षाद्धनुरंजितस्य ॥५॥ STERIOSISTEISIRIDIOTSITE १८२२/5I0SOTRICISTRICIDESI
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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