SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 187
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ CSIRIDIOTSIDSPIRIRIS विधानुशासन PASIRISIOSISISTRI5DIST गहाणं वज़ पाशेन बंध बंध फट फट । ॐ रम्हा ज्वालामालिनी ह्रीं क्लीं बनूं ट्रां द्रीं हां आंकों क्षीं खा रवीं रदूं रखों रतः हाः सर्वदुष्ट ग्रहाणं गल भंग कुरू कुरू फट फट ये ऐ॥ ॐ एम्यूँ ज्वालामालिनी ह्रीं क्लीं ब्लू द्रां द्रीं आंकोंक्षी छां श्रीं छौं छः है: सर्व दुष्ट ग्रहाणां मंत्राणि छिंद छिंद भिंद भिंद फट फट येथे ॐम्ल्यूज्वालामालिनी ह्रीं क्लीं ब्लूद्रांद्रीं हांआं क्रोक्षी ब्रांतींवौं वःहां सर्वदुष्ट ग्रहाण विद्युतपाषाणस्त्रेण ताडय ताडय भूम्यां पातय पातय हुं फट् घेघे॥ ॐ ठम्ल्यूँ ज्वालामालिनी हीं क्लीं ब्लूं द्रां दीं हां आं क्रों क्षीं ट्रांठीं ढूंठौ ठः हा सर्वदुष्ट ग्रहाण समुद्रे मर्जय मर्जय हुं फट येथे। ॐ इम्ल्यूँ ज्वालामालिनी ह्रीं क्लीं ब्लूं दादा हा आं को सी ड्रां जो हाहा सर्वडाकिनी स्तज्जट स्तजय सर्वशत्रून ग्रासय ग्रासय स्व व व व व स्वाद रवादय सर्व दैत्यान् विध्वंशय विध्वंशय दह दह पच पच पाचा पाचय धमाधम धर धर पुरुपुरुखुरुखुरुधुरुधुरु सर्वोपिद्रव महाभयं विनाशय विनाशय झम झम हम हम धपधर फर फर स्वर वर वरावण विद्या यातायातय पातय पातय चंद्रहास शस्त्रेण छेदय छेदय भेदय भेदय झंझंछंछ हं हं वं वं छिंद छिंद भिंद भिंद फट फट ये ये हां आं क्रों क्षीं ह्रीं क्लीं ब्लू ट्रां द्रीं ज्वालामालिन्याज्ञापयति स्वाहा।। अयं पठित सं सिद्धः श्री ज्वालिन्यधि देवता माला मंल : पजापावै गह रोगविषादि हत: यह श्री ज्वालामालिनी देवी का माला मंत्र केवल पढ़ने से ही सिद्ध होता है। इसका जप इत्यादि करने से ग्रह रोग और विष आदि नष्ट हो जाते हैं। इति ज्वालामालिनी विधि पंचमोचारसे जपे अथः कुष्माडिनी साधन विधानं हूं ह्रौं मों मध्ये हैं ह्रौं मों रूपांत्यादि स्थितं है हौं स्वाहांतं प्रणवादिकं मंत्र स्थावर श्रुदयाः फलदः शून्य पंचकं ॐहीं क्ष्मं ठः नमः हूं ह्रौं मों के सहित मध्य में है ह्रौ मों लगाकर अंत के स्वाहा बीज से पहले है ह्रौं आदि में प्रणय अर्यात् ॐकार सहित लगाये। ॐहूं ह्रौं भों हूँ ह्रौं मों है ह्रौं स्वाहा ।। यह फल को देनेवाली वर सुंदरी का मूलमंत्र है इसके पश्चात पांचो शून्यों ।
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy