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________________ 95959696996 विधानुशासन 9595959595975 तत्कोण चतुष्टये न्यसेत सौवर्ण रोपंावां पदयुगलं कारये दुरोर्देव्याः अभिषिच्य पंच गव्यैर्द्दधिघृत सत्क्षीर गंध जलैः अर्थ:- फिर वहाँ पर देवी के चरण कमल सुनहरे या चांदी के बना कर और गुरु के चरण बनाकर पंचगव्य दही घृत गंध जल से दूध से अभिषेक करें । मंडल दक्षिण देशे पद युगलं पूजितं निधाय तयोः नैऋत्यादिषु दिक्ष्वप्यन्वः चरण द्वयानि चूर्णेन लिखेत् । अर्थः- इन चरणों को मंडल की दक्षिण दिशा में बनाकर पूजा करें और दूसरे चरण नैऋत्यादि दिशाओं में चूर्ण से बनावे अर्हत पद युग कमलं मंडल मध्ये कोणेषु सूप्रदेश मुनि गधांक्षत पुष्प विलिख्य चूर्णेन युगानि लिखेत् समर्चयेत्सर्य ॥ अर्थ :- मंडल के मध्य में चूर्ण से भगवान अरहंत देव के चरण बनावे और कोणों में सिद्ध आचार्य उपाध्याय और मुनियों के चरण बनायें। इन सबकी गंध अक्षत पुष्प दीप धूप और चरू से पूजा करें। तस्योपरिपुष्पाणां मनोहरं मंडलं रचयेत सत्यं मंडलमेवं विलिख्य पश्चात सुगंधि कुसुम सलिलास्यैः ॥ अर्थ :- इनके ऊपर अनेकप्रकार के पुष्पों से शोभित मंडप बनावें । इसप्रकार सत्यमंडल को बनाकर पीछे सुगंधित पुष्प जलादि रखे। कंकण चरणा सपर्णा परा विकैर चंद्ये दुरोश्चरणौ । कनक रजत सूत्रैः पुस्तकमावेष्टय दिव्य वस्त्रैश्च शिरिव देवि पद युगले निधाय गंधादिभिश्च राजेत अर्थ :- सोने और चाँदी के तारों पिरोई हुयी मणियों की माला और दिव्य वस्त्र से पुस्तक को लपेटकर उसे ज्वालामालिनी देवी के चरणों में रखकर उसका गंध आदि से पूजा करें। कुसुमाक्षातांजलि पुटं ललाट हस्तंकृत प्रदक्षिणकं मंडल मध्यनिविष्टं घटोदकै स्नापयेत् शिष्यं ॥ ११ ॥ 9596969595PSPA १७७PPS
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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