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050505ICIDITIERE विद्यानुशासन AERSISTRISTRISISTERIES अर्यः- फिर पुष्प और अक्षतों को हाथों में लेकर हाथ जोड़े हुये प्रदक्षिणा करने वाले मंडल के बीच में बैठे हुये शिष्य को घड़ो के जल से स्नान कराये।
स्नानांबर भूषादिक मुचितं नान्यस्य तदरो रूचितं
परिधातुमस्य पक्षादन्यं वस्त्रादिकं दद्यात् ॥ अर्थ :- उस समय के वस्त्राभूषण आदि गुरु को ही देने उचित है। शिष्य को दूसरे वस्त्र आदि देवें ।
देवी मुनि गुरुचरण प्रणताय सुधर्म भक्ति युक्ताय।
पतपुयायतमे दिया साध्या द्विना देया अर्थ :- फिर देवी मुनि और गुरू के चरणों में झुके हुये धर्म तथा भक्ति युक्त पुस्तक धारण किये हुवे उस शिष्य को विद्या जो कष्ट साध्य रहित हो देवे।
पर समयिने ने देयात्वतया प्रदेयाश्च स्वकीय भक्तियुताय
गुरू विनय युताय दयाद्रचेत से धार्मिक नराय॥ अर्थ :- तुम यह विद्या अन्य मतावलम्बी को न देना किन्तु अपने शास्त्र के भक्त गुरु की विनय करने वाले दयालु धार्मिक पुरुष को ही देना।
ऋषि गौस्त्री हत्यादिषु यत्पापं तद्भविष्यति तवाटिय यदि दास्यसि पर समटा दो त्युत्कातः प्रदातव्या
क्षिति जल पवन हुतासन यजमाने व्योम सोम सूर्यादीन
ग्रह तारा गण सहितान् साक्षी कृत्य स्फुटं दद्यात् अर्थः- यदि तुम यह विद्या अन्य मतावलम्बी को दोगे तो तुमको ऋषि- गाय- स्त्री की हत्याका पाप लगेगा। यह कहकर उसको विद्या देखें। उस समय पृथ्वी, जल, पवन, अग्नि, यजमान, आकाश, सूर्य, चन्द्र और तारागण आदि की साक्षी से उसको विद्या दें।
त्वां मां शिरिव द्देवी पूर्याचार्यश्च लोकपालाच
साक्षी कृत्य मटोयं तुभ्यं दत्तेति खलु वाच्यं अर्थः तुमको मैंने ज्वालामालिनी देवी हेलाचार्य और लोकपालो की साक्षी से यह विद्या दी है उस समय यह कहे। ।
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