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________________ CASSISTDISTRICISISTERS विद्यानुशासन PASTISEDICTIO51955 अर्थ :- बुद्धिमान पुरुष ज्वालामालिनी देवी के संमुख मूलमंत्र का लाल पुष्यों से एक लाख जाप करें। तन्निष्टामण निशायां हिम कुंकुम लघुपरादिभि द्रव्यैः रचिताभि गुंडलिकाभिःर्जु हुयाद युतं यथा भिहितं ॥२॥ अर्थ:-फिर राशि के समटा नंदन कुकुंम लघुपरा (शुद्ध गुग्गल) आदि द्रव्यों की गोली बनाकर उससे दसहजार होम करें। अंबादेवी सन्निहिता शुभमशुभ यथा फलं निरिवलं। संपादोदऽभिमतं साधन विधि संग्रहित विद्यस्य ॥३॥ अर्थ :- इसप्रकार इस साधन विधि से विद्या सिद्ध करने वाले को वह माला ज्वालामालिनी देवी पास आकर संपूर्ण शुभ और अशुभ फल को कहती है। मंत्र जप होम नियम ध्यान विधि मा करोतु सन्मंत्री यद्यपत्र समुक्तं तथापि सन्मंत्र साधनं न जहातु ॥४॥ अर्थः- यद्यपि अग्नि एक होती है तथापि उसको हवा से क्यों नहीं झपका जावे, उसी प्रकार यद्यपि मंत्र एक ही होता है तब भी जप हवन से युक्त होने पर उसको लिये क्या असाध्य है? शाल्य क्षतै मंडल माविलिख्य द्विहस्तमानं चतुरस्त वंर्तत जिनेन्द्र बिंब शिरिव देवतायाः सुवर्ण पादौ च निवेश्य तत्र ॥५॥ अर्थःसाठी चांवलों से दो हाथ लम्बा-चौडा चौकोर मंडल बनाकर उसमें जिनेन्द्र भगवान की प्रतिमा और ज्वालमालिनी देवी के चरणों की स्थापना करें। अष्टोत्तर शतपूर्ण रष्टोतर शतक भक्ष दीपाये: जिन शिरिय देवी पदयोः पूजा गुरू भक्तित: कार्याः अर्थः फिर उन भगवान और देवी के चरणों की एक सौ आठ सुपारी और एक सौ आठ नैवेद्य दीप आदि से गुरू में भक्ति लगाकर पूजन करे। चन्द्रादयः साक्षिण इत्यथोत्का हिरण्य निक्षिप्त घटस्ट तोयैः दद्यात्ततः साधक सव्य हस्ते विद्या प्रदत्ता भवते मोति ॥५॥ अर्थ:- चन्द्र सूर्य आदि की साक्षी करके मैं तुमको यह विद्या देता हूँ. यह कहकर शिष्य के बायें हाथ में सोने के कलशों में सेजल की धारा डालें CHOICTORISODOISTOTRIOTE १७५PASTISIST505505512505
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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