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इत्थं पंडित मलिषेण रचितं श्री ज्वालामालिनी देवीका स्तोत्रं शांतिकरं भयापहरणं सौभाग्य सपत्करं प्रातमस्तक सन्निवेशित करोनित्यं पठेयः पुमान्
श्री सौभाग्य मनोभि वांचित फलं प्ताप्रोत्यऽसौ लीलया ॥८॥ अर्थ : यह पंडित मल्लिषेण का बनाया हुआ ज्वालामालिनी देवी का स्तोत्र शांति करता है भय को दूर करता है सौभाग्य और सम्पत्ति को उस पुरूष के लिये करता है जो इसका प्रातःकाल के समय सिर पर हाथ जोड़कर पाठ करते हैं।
पाश त्रिशूल कार्मुक रोपण श ष च क फल वर प्रदान करा
महिषा रूढाऽष्ट भुजा शिरिष देवी पातुमां श्रुचः ॥१॥ अर्थ :- नागपाश त्रिशूल धनुष बाण मछली चक्रफल और वर प्रदाण युक्त आठ हाथों वाली में भेंसे पर चढ़ी हुई वह देवी ज्वालामालिनी मेरी रक्षा करे।
यात्रेच्छ मुक्त रूपां तां मुखांतां ज्वालिनी तथा आचरंतु उपचाराणां पंचकं साधकोचयेत्
॥२॥ अर्थ :- साधक पुरूष उस देवी ज्वालामालिनी की एक पत्र के ऊपर कहे हुवे रूप वाली लिखकर उसका पांचो उपचारों से पूजन करें।
ब्रह्मावशिष्ट पिंड ज्वालिनी नव तत्व पूर्वमें हि युगं।
स्वाहा संवोषडि ति ज्वालिन्याऽहान मंत्रोयं ॥३॥ अर्थः- ब्रह्म (3) शेष पिंड ज्वालामालिनी नव तत्व तथा दो बार ऐहि ऐहि के पश्चात स्वाहा और संयोष्ट युक्त मंत्र ज्वालामालिनी देवी का आह्वानन मंत्र है।
क्ष ह भ म पिंड ज्वालिनी नवतत्वान्टेष मंत्र मुचार्य
स्वनिधन पद समुपेत स्त्रितये संस्थापनादिना ॥४॥ अर्थ :- क्ष ह भ और म अक्षरों के पिंड ज्यालामालिनी देवी और नयतत्वों का उच्चारण करके अपने अंत के पदो सहित स्थापना आदि के मंत्र बनते हैं।
ॐ एल्च्यू रम्ल्यूँ म्ल्यू इम्ल्यूँ मल्ड्यू ब्ल्यू सम्पूणेन्दु स्वायुध वाहन समेते सपिवारे हे ज्वालामालिनी ह्रीं क्लीं ब्लू ट्रांट्री आंकों सी ऐहि ऐहि स्वाहा संवोषद