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________________ 9595296959595 विद्यानुशासन 959595959596 हा मां पुरोद्विप वशीकरणं तदेग्र क्षीं बीजकं शिरिवमती वर पंचबाणैः मंत्रा नमत विनयादिक लक्ष जापं होमेन देवी वरदा जपतां नराणां ॥ ४ ॥ अर्थ:- हां आं द्विप वशकरणं क्रों क्षीं के पश्चात देवी का नाम और पांच बाण सहित मंत्र के आदि में विनय ( 3 ) करने से देवी जप करने वाले पुरूष को वर देती हैं। ॐ ज्वालामालिनी ह्रीं क्लीं ब्लूं द्रां द्रीं ह्रां आं क्रों क्षीं नमः तांबूल कुंकुम सुगंधि विलेपनादीन् यः सप्त चार मभिमंत्र्य ददाति यस्यै सातस्य वश्य मुपयाति निजानुलेपात् स्त्रीणां भवेदभि नवः स च कामदेवः ॥५॥ अर्थः इस मंत्र को सिद्ध करनेवाला पुरुष तांबूल, कुकुंम और सुंगधित लेप आदि को इस मंत्र से सात बार मंत्रित करके जिसको देता है, वह स्त्री या पुरुष सेवन करते ही साधक के वश में हो जाते हैं। यह साधक स्त्रियों के लिए नया कामदेव बन जाता है। प्रणव मायाक्षरं संपुटभाविलिट बाह्येऽग्नि संपुट पुरं रर कोण देशे तद्वेष्टितं शिरिव मती वर मूलमंत्रऽदायाति देव वनितापि खदिराग्नि तापात् ॥ ६ ॥ अर्थ:- माया अक्षर ह्रीं प्रणव (3) के सम्पुट में लिखकर बाहर अग्निमंडलों का सम्पुट बनाकर उनके कोणों में रं बीज लिखे | सबसे बाहर ज्यालामालिनी देवी के मूलमंत्र से वेष्टित करके खैर के कोयलो की तेज अग्नि की आंच देकर, ताम्र पत्र पर लिखकर, खेर कोयले की अग्रि में तपाने से देवताओं की स्त्री आ जाती है । वेष्टेन मंत्रोद्धार ॐ ज्वालामालिनी ह्रीं क्लीं ब्लूं द्रां द्रीं हां आं कों क्षीं शीघ्रं अमुकं आकर्षय आवय संवोषट् - पाष्टकां बूरुह मध्यगत त्रिमूर्ति शेर्षाक्षराणि च विलिख्य दलेषु देव्याः मायावृतं मधु समन्वित भांड मध्ये निक्षिप्य पूजयति तद्वशमेति साध्य 96959595969599 १७०P/595‍ たぶんぶ
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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