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________________ 252525252525 frangenen 252525252525 ह्रीं ज्यालामा ॐ म पार्टी रक्ष रक्ष स्वाहा ॐ मं रीं ह्रीं ज्वालामालिनी मम नाभिं रक्ष रक्ष स्वाहा ॐ हं हूं ज्वालामालिनी मम वक्षःस्थलं रक्ष रक्ष स्वाहा ॐ सं रौं ह्रौं ज्वालामालिनी आननं रक्ष रक्ष स्वाहा ॐ तं : ह्रः ज्वालामालिनी मम शीर्ष रक्ष रक्ष स्वाहा --- कूटाक्ष पिंडमथ शून्य भपिंड युग्मं तद्वेष्टितं मपरपिंड कलात्रि देहैः । •बाट पत्र कमलं यरधादि पिंडान विन्यस्य तेषु पर तो नवतत्ववेष्ट्रां ॥ ३ ॥ अर्थ:- कूटाक्षरपिंड मर्च्यू शून्य पिंड हर्च्यू दो भपिंड म्म्ल्यू को भपर म्म्र्यू से वेष्टित करके इस त्रिदेह पिंड को स्वरों से वेष्टित करे उसके पश्चात आठ पत्रों में यर घ झष छठ व आदि पिंडों से वेष्टित करके नव तत्व लिखे । श्री ६ a यूँ ज्वालीमालनी 上 ज्वालामालानी 她 स्वामा मालनी द्र Pancre T यूँ 给 आ अ 6 Back 25252525252525 «P505250 Ka Jaa $ 简 P55
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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