________________
CASIOHIDISTRISTOTSIS5 विद्यानुशासन 85121510513501505
एहि एहिहौंकारं नादे.ज्वल दनल शिरया कल्प दीयों ध्वर्द केशैः ा मा स्टौस्तीन नेत्रै विषम विषधरा लंकतै स्तीक्ष्ण दष्टै: ॥ भूतैः प्रैतै: पिशाचै स्फुट यटित रूप] बाधिती ग्राप सगान धूली कृत्य स्वधाम्रा पन कुच युगले देवी मां रक्ष रक्ष ॥७॥
झौं झौं झौं शाकिनी नां समुपगत मत प्वसिनी नीर जास्य ग्लौं क्ष्मं ठं दिव्यं जिव्हागति मति कुपित स्तंभिनी दिव्य देहे फट फट फट सर्व रोग ग्रह मरण भयो च्याटिनी योर रूपे आंकों क्षी मंत्र पूते मद गज गमने देवि मां पालय त्वं ॥८॥
इत्थं मंत्रोक्षरोत्थं स्तवनममनुपमं वह्नि देव्याः प्रतीतं विद्वेषो च्चाटन स्तंभन जन वश कत पाप रोगाटा नोदि प्रोत्सप्पजंगम स्थावर विषम विष ध्वसनं स्वायुरारोग्यै
शवयादीनि नित्यं स्मरति पठति यः स्मो श्रुते भीष्ट सिद्धिं ॥९॥ विधि:-इसप्रकार यह मंत्राक्षरों से निकला हुआज्वालामालिनी देवी का अनुपम स्तोत्र है जो इसका नित्य स्मरण करता है और पढ़ता है वह अपनी इच्छित सिद्धि को पाता है। इसी स्तोत्र से विद्वेषण उधाटन स्तोभन और वशीकरण होते है। यह पाप तथा स्थावर और जंगम विष भी नष्ट करता है तथा आयु आरोग्य और ऐश्वर्य आदि को देता है।
सुखदायक यंत्र :पाश त्रिशूल झषचक्र धनुः सस च सन्मातुलिंग वरदान कराष्ट हस्ता
मातंग तुर्ग महिषा धिपयान वाहा सा पातुमां सिरिव मती शरदिंदु वर्णा ॥ १॥ . अर्थ:- नाग पाश त्रिशूल मछली चक्र धनुष बाण विजोरा और वरदान सहित आठ हायों वाली हाथी के समान ऊँचे भैंसे पर चढ़कर चलने वाली और शरदकाल के चन्द्रमा के समान वर्ण वाली ज्यालामालिनी मेरी रक्षाकरे।
हां हीं सु बीज सुरव होम पदांत मंत्रै रा ज्वालिनी प्रमुख गैर्मम पाद नाभि
वक्षःस्थलाननं शिरांसि च रक्ष रक्ष त्वं देव्यं मीमिऽरिति पंच वियैः सुमंत्र उत्तम बीज द्रां द्रीं की आदि में सुख (ॐ) लगाकर ज्वालामालिनी मम पादौ नाभिवक्षःस्थले आननं शीर्ष रक्ष रक्ष पदों के पश्चात् अंत में स्वाहा पद सहित पांच सुंदर मंत्रों से शरीर की रक्षा करे।
SUSD5100510150151915
१६८/5051510051015015015