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________________ ' 959695951 विधानुशासन 9599691591 एक भागो भवेद्विप्रस्यैकः क्षत्रिय वैश्ययोः शुद्रस्याप्येक भागश्चत्संयुक्तो मित्रतां व्रजेत ॥ १३ ॥ यदि ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य और शुद्र प्रत्येक का एक एक भाग हो तो एक वर्ग के यह मिलकर मित्रता रूप में परिणत हो जाते हैं। सर्वे मंत्रान् चैकस्मिन् वर्गेऽभिष्ट फलप्रदाः विभुच्याक्षर संथातमिति सर्वज्ञ भाषितं ॥ १४ ॥ एक ही वर्ग में सब मंत्र अभिष्ट फल को नहीं देते किन्तु अक्षरों के संधात को बचाकर ही (अक्षर संधात वाले मंत्र) फल देते हैं। ऐसा श्री सर्वज्ञ देव ने कहा है । पुल्लिंगाक्षर मित्रत्वं रामाक्षर समं सदा । नपुंसकमुदासीनमक्षरं तद्वयोरपि 113401 पुल्लिंग अक्षरों के साथ रत्रींलग अक्षरों की ही तरहती है कि अक्षर उन दोनों में ही उदासीन रहते हैं । सप्तकलाः पुल्लिंगा नपुंसका स्तत्र संति सप्तकलाः द्वेच कले स्त्री ज्ञेये कलासु मध्येतु षोडशेषु सोलह कलाओं में से सात अक्षर पुल्लिंग और सात नपुसंक उ ऊ ए ऐ ओ औ अं ) पुल्लिंग है। (आ ई) स्त्रीलिंग है। (इ ॥ १६ ॥ लिंग एवं दो स्त्रीलिंग वाले हैं। (अ ऋ लृ लृ ए अ:) नपुंसक हैं। आदिम पंचम षष्ट द्वादश मुरव पंच दशक पर्यंताः पुल्लिंगा: स्त्री लिंगो द्वितीय तुयं स्वरौ स्यातां ॥ १७ ॥ शुरू का पहिला अ पांचवाँ उ, छठवाँ ऊ बारहवाँ ऐ और पंद्रह तक अर्थात तेरहवी चौदहवीं और पन्द्रहवीं ओ औ अं पुल्लिंग हैं। दूसरी और चोथी कला आ ई स्त्रिलिंग की है। अ उऊ ऐ ओ औ अं पुल्लिंग आ ई स्त्रिलिंगौ सप्तं कलादि रूद्र प्रमाण पयंत सकलांतकला: त्रिकलापि सप्तषंढा इत्युदिता मंत्र वादेऽत्र ॥ १८ ॥ अ उऊ ऐ ओ औ अं पुल्लिंग आ ई स्त्री लिंग और तीसरी कला से ग्यारह कला तक और अंत की कला अः यह सात स्वर नपुंसक लिंगी है। ऐसा मंत्रवादियों ने कहा है। 95959159595950 ११ P159695959555
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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