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________________ 95959595 विद्यानुशासन 959595 Ses ॥ ९ ॥ विप्र (ब्राह्मण) मंत्र एक लाख योजन तक जाने वाले, क्षत्रिय पचास हजार योजन तक जाने वाले और वैश्य २५ हजार योजन तक जाने वाले और शूद्र बारह हजार पांच सो योजन तक जाने · वाले होते हैं। ब्राह्मण क्षत्रिय वैश्य लक्ष योजनगा विप्रा स्तर्द्धगतयो नृपाः तदर्द्ध गामिनो वैश्याः शूद्रा स्तर्द्धदलयायिनः अर्थ - विशिष्ट ब्राह्मणादि वर्ण की सिद्धि की तिथि, वार व उसकी गति की तालिकातिथि प्रतिपदा, नवमी ( ९ ) रवि, शनि अक्षर बार गति ११,१२,४ सोमवार ५, ६, १३, १४ मंगल शूद्र पर्व के दिन १४ आदि तथा ७ को गुरूवार एकलाख योजन पचास हजार योजन पच्चीस हजार योजन कार्य स्तम्भन १२.५ हजार योजन कार्य पौष्टिक आप्याक्षरमग्न्यक्षरमरयांमरुदनि बीजमपि मित्र भूम्यक्षरमाप्याक्षर सुभवे च मित्रं रव बीजं च 118011 जल अक्षर और अग्नि अक्षर एक दूसरे के शत्रु होते हैं। वायु अक्षर और अग्नि अक्षर एक दूसरे के मित्र होते हैं। पृथ्वी अक्षर और जल, अक्षर और रव बीज वायु अक्षर भी मित्र होते हैं । धरा निलज वर्णा नाम न्यान्यमिह सर्वदा न मित्रतत्वं न वैरत्वं मौदासीन्य तु केवलं ॥ ११ ॥ पृथ्वी और वायु अक्षर की परस्पर न मित्रता ही है और न ही शत्रुता ही है किन्तु उदासीन हैं। एकः शुद्रस्त्रिभिर्वितेम्मिंत्रत्वं प्रतिपद्यते त्रिभिः शुद्रैर्द्विजीप्येक स्तथाक्षत्रिय वैश्ययोः ॥ १२ ॥ एक शूद्र की तीन ब्राह्मणों के साथ तीन शुद्रो की एक ब्राह्मण के साथ और क्षत्रिय तथा वैश्यों की मित्रता नहीं होती है। 95959595969691 १० 159695959‍595
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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