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SHIRISIRIDICTICKSEE विद्यानुशासन ADIDISTRICIRSSISTORY ॐवं रां हां ज्वालामालिनी मम पादौ रक्ष रक्ष स्वाहा। ॐ मंरी ही ज्वालामालिनी मम जयनं रक्ष रक्ष स्वाहा ॐहं 5 हूं ज्वालामालिनी मम उदरं रक्ष रक्ष स्वाहा ॐसं रौं ही ज्वालामालिनी मम वदनं रक्ष रक्ष स्वाहा ॐ तं रह: ज्वालामालिनी मम शीर्ष रक्ष रक्ष स्वाहा
आपाद मस्तकां तं ध्यायेत जाज्वल्यमान मात्मानं
भूतोरगशाकिन्योभी त्वाजश्यंती दुष्ट मगाः ॥८॥ अर्थ :- अपने को घरस से मस्तक तक अत्यंत प्रज्वलित घ्याज करे इस प्रकार भूत सर्प शाकिनी और दुष्ट पशु दूर होकर नष्ट हो जाते हैं।
सां क्षीं झू 4 क्षों क्षः रखे रखे प्राच्यादि दिक्षु विन्यस्तं
मूलावा पयंतां दिशा वंद्यं करोतिदं । अर्ग ..मि. गूलगो मारो फति निशानों में मां श्रीं हू क्षे ? क्षों क्षौं क्षः को रखकर दिशा बंधन करें। पाठांतरं
आत्मानपि समंत्रः आतुर स्तं वज्र पजरम रोड ध्यायेत् पीतं मति मान भेद्य मन्टोरिदं दुर्ग
॥१०॥ अर्थ :- फिर यह बुद्धिमान अपने चारों तरफ चौकोर वज़ मय अखंड पिंजरे के समान दूसरों से अभेद पीतवर्ण के दुर्ग का ध्यान करें।
मंत्र जप होम कालेनोपद्रवति स मंत्रिणं कश्चित्
दुष्टगहो जिघांश्रु नलंधो दुर्ग मध्यगतं ॥११॥ अर्थः उस दुर्ग के बीच में बैठे हुये मंत्री के पास मंत्र जाप तथा होम के समय में कोई दुष्ट ग्रह भी लांघकर नहीं आ सकता है।
भूत्रीषु सप्त भीषु त्रिभूकोष्टा सर्व दिग्मुखाः लेख्या विद्या जव टोक चत्वारिंशत्पदप्रभा
॥१२॥ अर्थ : सातों प्रकार के भयों से पृथ्वी की रक्षा करने वाले उस वज मय पिंजरे में सब दिशाओं की तरफ पृथ्वी पर तीन कोठे बनावे और उनमें विधि पूर्वक इकतालीस पद लिखे CISISISTRISTOTRIOTICISIS5 १६३B975ICISTOTRICISIOS505