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अनएनएनएनएनएन विधानुशासन क
चिनयोज्वाला मालिन्युद्येतन वतत्व नमस्कारः
एषा प्रधान विद्याज्ञातव्या ज्वालिनी देव्या
॥ २ ॥
अर्थ :- ज्यालामालिनी की विनय (ॐ) और नय तत्व सहित नमस्कार मंत्र ही देने की विद्या है वह ज्वालामालिनी कल्प से जानना चाहिये ।
त्रिमूर्ति मूर्ति द्वय मैंद्र युक्तं पयोधिमेन्द्र स्थित मां समेतं स्त्री रेत सो द्रावण मुत्तमं द्रां मु मां द्भेदिविदु स्तथा द्रीं
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॥ ३ ॥
शून्यं द्वितीय स्वर मिद्रं युक्तं स्वरो द्वितीय श्च स बिन्दु रन्य: मृगेन्द्र विद्धि द्रू शकृ च्च कट् स विसु विंदु नवभेद तत्त्वं ॥ ४ ॥ अर्थ :- त्रिमूर्तियाला क्लीं दो मूर्तिवाला ल इन्द्र युक्त लं समुद्र रूप हं ऐन्द्र लं और लं सहित यंत्र स्त्री के रज को द्रवित करता है और चन्द्ररूप द्रां द्रीं लक्ष्मी के हृदय को भी भेदन करने वाला है। दूसरा स्वर बिंदु से युक्त होने पर शून्य कहलाता है। आं सहित अर्थात् उसी को दुबारा कुट विष्णु और विन्दु सहित लेने से अर्थात् आं आं क्षः हं और अं यह मंत्र सिंह के मार्ग को भी वश में करता है ।
(ह्रीं क्लीं ब्लूं द्रां द्रीं हां आं क्रों क्ष्वीं) नवतत्व मंत्र है।
उभय करांगुलि पर्व सु वं मं हं सं तथैव तं बीजं न्यस्य कराभ्यां मुकुली कुर्यात् सर्वांग संसुद्धि
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दोनों हाथों की उंगुलियों के जोड़ो में वं मं हं सं तं बीजक्षरों को रखकर फिर सब अंगो की शुद्धि
करें ।
वामां करांगुलि पर्व सरां रीं रू रौं रः न्यस्ये च्च रं बीजं
ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्रः पुनरेतानपि विन्यसेतद्वत ॥६॥
बायें हाथ की उंगुलियों के जोड़ो में रां री टं रौं र बीजों को रखकर फिर उसी प्रकार ह्रां ह्रीं हूं ह्रीं हः बीजो को रखें ।
वामांदीन्येतान्येव देवि पादौ च जघनमुदरं
वदनं शीर्ष रक्ष युगं स्वाहांतानि स्वांग पंचके न्यसेत्
अर्थ :- इन्हीं को वामांग में आरंभ करके दोनों पैर जाँघ, पेट, मुख और सिर में लगाकर रक्ष रक्ष स्वाहा के साथ पांचो बीजों को लगावे ।
こちにちにちにちにちにちにマンにでらでらでらですぐり
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