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9595959595 विद्यादुशासन 95959595959
नव तत्वान्ये कैकं नव पदं विंध्यो लिखेद्विधि क्रमश:
तत कोण त्रिपद चतुष्कै द्वादश पिंडान्प्रदक्षण तः ॥ १३ ॥
अर्थ :
- दूध तत्वों में से एक को लिखे हुवे वह यह है- द्रां द्रीं क्लीं ब्लूं सः हां आं क्रों क्षीं फिर क्रम से विध्य के नौ पदों को लिखे । उसके पश्चात तीसरे कोठे में तीन गुण चार अर्थात बारह पिंडों
को लिखे जो यह है ।
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क्ष हर्च्यू म्मल्यूं रमल्यू रम्ल्यूं घम्ल्यू इम्ल्यू म्ल्यू ठ्ल्यू
कम्ल्यू
अत्राष्टमे समुद्देशे द्वादश पिंड पिंडाक्षाकार पिडाधा: स्तंभादिषु ग्रहाणां निग्रहणं चापि वक्ष्यंते
॥ १४ ॥
अर्थः- इन पिंडों को आगे आठवें समुदेश में ग्रहों के स्तंभन तथा निग्रह आदि के साथ साथ लिखेंगे।
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विलियेच्च जयां विजयामऽजिताम पराजितां स जंभां । मोहां गोरीं गांधारी चं क्रों ब्लूं पार्श्वे ष्व ॐ जादिका
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अर्थः- जय विजया अजिता अपराजिता जृंभा मोहा गोरी गांधारी क्रों ब्लूं को श्रीं और क्लीं को आदि में (ॐ) अंत में स्वाहा लगाकर बारह विन्द पदों के स्थान में लिखे ।
ॐ जयायै नमः ॐ विजयायै नमः ॐ अपराजितायै नमः ॐ जूंंभायै नमः ॐ मोहाद्यैनमः
ॐ गोयॅनमः ॐ गाधायें नमः ॐ क्रों नमः ॐ ब्लूं नमः ॐ श्रीं नमः ॐ क्लीं
नमः ॥
स्वाहांताः क्षीं क्लीं पार्श्वस्थेषु ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्रः श्चतुः कोष्टेषु विलिखेत् । रेखाग्रेषु विलिखेषुच वज्राण्यथ वज्र पंजरं प्रोक्तं ॥ १६ ॥
अर्थ: चारों कोठों में ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्रः इन पाँचों शून्यों बीजों को लिखे और सब रेखाओं के अग्रभाग में वज्रों को लिखे यह वज्र मय पंजर का वर्णन किया गया है ।
पिंडेषु ष्वभानां देव्यभिधानं पृथक पृथक लिख्यंतान् । स्त्रीनेके जैव प्रवेष्टेरोन मध्य पिंडेन् ॥ १७ ॥
अर्थ :- पिंडों को लिखने में हम आदि अक्षरों को पृथक पृथक रूप से लिखकर पिंडों के अंदर सावधानी से लगायें फिर मध्यपिंड के द्वारा देवी को वेष्टित करें।
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