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9595959555 विद्यानुशासन 959596959
लक्ष्मी विधानं
पद्महस्ता विशालाक्षी सृप्तवाद्धिं भिरावृता । पल्लवांकुर संकीर्णा पुष्प मंडप मध्यगा शुभ्राभ स्फुट वर्णाभ्यां सौधांत Ăवतावृत्तां हस्तिभ्यां हेमकुभाम्यां क्षीर वार्यऽभिषेचितां
अर्थ:- हाथ में कमलवाली, बड़े बड़े नेत्रों वाली, सप्त समुद्रों से घिरी हुई, पत्तों और अंकुरों से व्याप्त, फूलों के मंडप में स्थित, अत्यंत शुभ बादलों के समान प्रकाशित वर्ण वाली, राजमहलों और उनकी देवियों से घिरी हुई, दो हाथियों के द्वारा सोने के कलशों से दूध रूपी जल से स्नान कराई जाती हुई महालक्ष्मी देवी का ध्यान है ।
इत्थंभूता महालक्ष्मीर्यस्यचित्ते व्यवस्थिता । तस्य प्रयु नित्यं कामाचं ज्ञान संपदा ।
अर्थ : ऐसी महालक्ष्मी जिसके चित्त में बस जाती है उसको सदा ही ज्ञान अर्थ और काम के ऐश्वर्य को देती है।
इति मूर्तिध्यानं
कर्णिकायांतु विनस्यदेवीं पत्र चतुष्टये । मति ज्ञानादि दातव्यं भक्ति स्वाहा प्रताडितं
॥ १ ॥
अर्थ : कर्णिका में उपरोक्त प्रकार से देवी को लिखकर फिर चारों पत्रों में भक्ति (ॐ) और स्वाहा सहित मति ज्ञानादि लिखे ।
ततोष्ट पद्म पत्रेषु श्री ही धृति कीर्ति बुधयः । लक्ष्मी शांति प्रभावत्या प्रणव स्वाहान्वित मतः
॥२॥
अर्थ: फिर आठ पत्र बनाकर उनमें ॐ तथा स्वाहा सहित श्री ही घृति कीर्ति बुद्धि लक्ष्मी शांति और प्रभावती को लिखे ।
पश्चात् प्रवेष्टये लक्ष्मीं ततो षोडश पत्रकं । तत्र देवाः प्रयोक्तव्याः भक्ति स्वाहा प्रभाजिताः
959P6959595959 १८PSPSPSP59595951
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