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रक्त करवीर दंड दग्धं सर्वग्रौ निधाय चांगारं रुधिरेण वामजंधो दद्भवेन तं सिंचयेत् प्राज्ञः
पश्चात् भूतलेतं निक्षिप्तव्यं प्रयत्रतोन्य पत्रतेन च सूत्रेण च भूर्ये बले कार्पोत्पन
लाल कनेर के दंड को जलाकर उसके अंगारों की अग्नि में रखकर पंडित पुरुष अपनी बाई जंघा के रक्त से उसको सींचे। फिर भोजपत्र पर अपने कार्य को लिखकर उस धागे से लपेटकर उसक किसी दूसरी जगह यत्न पूर्वक पृथ्वी में रख दें।
आरक्त सूत्र वेष्टितमथकृत्वा मदन पुत्रिका हृदये, निक्षिप्याधः शीर्ष भवति यथा सा तथा लभ्या
॥ २१ ॥
मालिख्य ॥ २२ ॥
॥ २३ ॥
इसके पश्चात उस काम देव की पुतली स्त्री के हृदय पर लाल धागा लपेटकर उसका सिर नीचे की तरफ करके रख दें। तो उसको किसी तरह प्राप्त कर लें ।
पश्चात त्रिकोण कुंडं निखन्य संध्या सुधमेह तस्मिन तिल शर्षय लवण यृतैरे काद्दानयेन्नारी
॥ २४ ॥
फिर इसके पश्चात सायंकाल के समय त्रिकोण कुंड खोदकर उसमें तिल सरसों लवण और घृत का होम करें तो स्त्री को एक दिन में प्राप्त करे स्त्री एक दिन में हो आ जावे ।
ॐ ह्रीं कों हदि कर्णयोरऽपि तथा हस्त द्वये श्री न्यसे, नाभौ ब्लूं स्मरबीजकं स्मर पदं तस्याधरे यूँ पुनः येथे हस्त तलाग्रयोर्मणिपदे बाहौ च हामां क्रमालिखेत् बाह्ये ह्रीं वलयं ततोऽग्नि पुटके शब्दादि मंत्रं लिखेत्
हृदय में ॐ दोनों कानों में ह्रीं क्रौं दोनों हाथों में श्री नाभि में ब्लूं योनि में क्लीं नीचे होठ में यूँ दोनों हथेलियों में घे घे कलाइयों में हां दोनों भुजाओं में आं लिखें। उसके बाहर ह्रीं का वलय देकर फिर अग्नि मंडल से शब्दादि मंत्र लिखे ।
ॐ ह्रां आं कों ह्रीं यूं श्रीं क्लीं ब्लूं द्रां द्रीं अंबे अंबिनी जंभे जंभिनि मोहे मोहिनी स्तंभे
स्तभिनी ररररर घे घे स्वाहा ॥
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१५६ P/59/52595959595