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________________ SCSIRISTRIEDEOSE विद्यानुशासन CISIOISTRISTRISTRISTOTRA फिर सम्पूर्ण शास्त्रों और मंत्र वाद में चतुर सरस्वती के प्रिय नग्न मुनियों, यतियों , आचार्यों और गुरुओं को नमस्कार करके तथा अग्नि, जल, शुक्र आदि ग्रहों चन्द्र, सूर्य और तारों को साक्षी करके सोने के बने हुये घड़े से उसके हाथ में जल की धारा दे। द्रवंति वनिताः सद्दिष्टावा सन्मंत्र वादिनं, सोमं गत्वा ग मिष्टांति पुरग्राम वर स्त्रिय धनाभिलाषस्य धनं महत्ता द्विषाय हारं च विनासनेच्छा यदीप्सितं चेत सि साधकेन तदेव तस्मै भुवि सा ददाति ॥१७॥ इस मंत्र वाले उत्तम मंत्री को देखकर सब स्त्रियां द्रवित हो जाती हैं तथा नगर और ग्राम की उत्तम लियां क्षोभ को प्राप्त होती हैं। धन की इच्छा करने वाले को बड़े भारी धन की राशि प्राप्त होती है। विष को नष्ट करने की इच्छा वाला विष को दूर करता है। यहां तक कि साधक पृथ्वी पर जो इच्छा करता है देवी उसको वही देती है। आकृष्टि विद्वेषण वश्य शांति संमोहनोच्चाटन रोधनानि, सएव मंत्रः कुरुतेह मुरव्यै जानाति चेन्मंत्रं विधि समस्तं ॥१८॥ यदि कोई पूर्ण विधि मंत्र को जानता हो तो यही मंत्र आकर्षण विद्वेषण, वशीकरण, शांति , मोहन, उच्चाटन और स्तंभन भी करता है। बजासनः पूर्व मुरवोपविष्टः स्तालादि भिः संविलिरयेत्संत्रमंत्रं मत्रांतरे नाम पदं वितन्व न्दिरोध यत्वायु पथः समंतात् ॥१९॥ वजासन से पूर्व की तरफ मुख करके बैठा हुआ हरताल आदि से मंत्र को लिखकर तथा दूसरे मंत्र में नाम के पद को रखने से जन्मभर के लिये विरोध हो जाता है। पट्टे च पट्टांबर भूर्य पत्रे पीत प्रसूनैरभि पूज्य पूर्व, पीतेन सूत्रेण च वेष्टियित्वा धरातलस्थं कुरुते निरोधं ॥२०॥ पट्ट वस्त्र या भोजपत्र पर लिखकर पहले पीले पुष्पों से पूजन करे तया पीले धागे से लपेटकर पृथ्वी में गाड़ने से स्तंभन करता है।
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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