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एवं निवेद्य पूर्व शिष्याय जिनेंद्र गुरूजन स्याग्रे आत्मायागत विद्या दातव्या शाळूमपहाय
विधानुशासन 959595969
॥ १५ ॥
यह मंत्र जैनशास्त्र और जैन गुरु के चरण कमलों में भक्ति रखने वाले ही को देना चाहिये। मंत्र देकर शिष्य को बतलादे कि यदि तू यह मंत्र कुद्दष्टि (मिथ्याद्दष्टि) को देगा तो तुझको मुनि की हत्या करने का पाप लगेगा। शिष्य से जिनेन्द्र भगवान और गुरुजनों के सामने पहले यह बात कहकर अपनी विद्या निष्कपट होकर देवें।
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निशेषागम मंत्रवाद कुशलान वाग्देवता वल्लभान् नत्या तान विशेषरा न्यति पतिनाचार्य यर्यान गुरून्, दद्यात् स्वर्ण समन्वितोन्नत घटाधारा जलं तत्करे साक्षी कृत्य हुतासना निल अनंता पृथ्वी कुरिति विद, भ्रमाका शमनं तमं बर मिति सोम प्रभाचार्य कोशात् कुवि चद्रार्क तारा गणान्
2525252525959 R4 P5252525252525
॥ १६ ॥