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________________ 052525252595 degresi Y50525252525 वाग्वदेन वा कंठे दि हृदये नींच योजयेन्नाभौ पाद द्वितये स्वाहा शब्दं कुंदेन्दु सम वर्ण ॥ ६॥ महा पद्म यसो योग पीठा ग्रेति नमोतकः पीठ स्थापन मंत्र: स्योत्तजो ह्रीं कार पूर्वकः फिर सर्व शरीर में प्रणव (3) सिर में और दोनों आंखों में हीं नाक में व और मुख में सर्वत्र द का ध्यान करे । कंठ से लगाकर हृदय तक वाग्वदने नामभि में नीं और दोनों पावों में कुंद पुष्प तथा चन्द्रमा के समान वर्ण वाला स्वाहा शब्द लगावे । तेज (3) और ह्रींकार पूर्वक महापद्मा यशोयोग पीठा के अंत में नमः लगाकर पीठ स्थापन मंत्र बनता है । ॐ ह्रीं महा पद्मा यशो योग पीठाय नमः ॥ ॥५॥ दिक्कपत्रे (पटके) ष्ट दलांभोजं श्री खंडेन सुंगधिना । जाति का स्वर्ण लेविनीन्या दुर्वा दर्भेण वा लिखेत ॥ १ ॥ दिशाओं के पत्रो में आठ दल युक्त कमल को सुगंधित चंदन चमेली सोने या डाम का कलम द्वारा लिखे । ॐ कार पूर्वाणि मोतं कानि शरीर विन्यास कृताक्षराणि प्रत्येकतोऽथैवयथा क्रमेण देवानि कादीनां प्रथमायु अष्टौ काद्याः परस्परः स्वताभ्यां क्रमाद्युक्ता विज्ञेया स्तत्र केशरा il तान्यष्टषु पत्र के षु ब्रह्म होम नमशब्दांमध्ये कर्णिकमा लिखेत, कंक प्रभुति भि स्तंच कैशरै वैष्टये नमः उन आठों पत्रों के प्रत्येक पत्र के आदि में ॐ और अंत में नमः लगाकर शरीर में न्याय करके अक्षरों को पृथक पृथक पत्रों में विखे । उसकी कर्णिका के बीच में ब्रह्म (ॐ) होम (स्वाहा) और नमः शब्द को लिखे और कंक: आदि को उसके पराग के स्थान में रखे । ॥ २ ॥ क आदि वर्ग के प्रथम आदि अक्षरों तथा प आदि आठो अक्षरों के अंत के दो स्वर अं अः से युक्त करके पराग या केशर के स्थान में रखे । 969596959PPA १४३ P159595951959595
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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