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________________ PSPS विद्यामुशासन ॥ सरस्वती विधान ॥ 9552959599 विनयं माया हरिवल्लभाक्षरं तत्पुरो वद द्वितीयं, वाग्वादिनी च होमं छाग़ीशा मूल मंत्रोद्यं ॐ ह्रीं श्री वद वाग्वादिनी स्वाहा यह सरस्वती का मूल मंत्र है। विनयं बीजं हरि प्रिया तत्पुरो वद द्वितीयं वाग्वादिनी च होमं वागीशा मूल मंत्रोऽयं मंत्रोद्धारः ॐ ह्रीं श्रीं वद वद वाग्वादिनी स्वाहा । विनयं ( 3 ) माया बीज (हीं) प्रिया (श्री) दो बार यद वाग्वादिनी और होम (स्वाहा) यह वागीशादेवी का मूलमंत्र है। मंत्रोद्धार : ॥ १ ॥ तेजोवद युगवादिनी त्यतः शून्यमेकैकं क्रमतोंग मंत्र पंच कमापि पंचागेषु विन्यसेत् तेज (3) दो वद वाग्वादिनी के पश्चात क्रम से एक एक शून्य बीजों के पांचो अंगों को लगाकर पंचांग न्यास करे । ॐ वद यद वाग्वादिनी ह्रां हृदयाय नमः ॐ वद वद वाग्वादिनी ह्रीं शिर सेस्वाहा ॐ वद वद वाग्वादिनी हूं शिखायै वषट् ॐ वद वद वाग्वादिनी ह्रौं कवचाय वषट् ॐ वद यद वाग्वादिनी हः अस्त्राय फट् ॥ रेफ ज्वलद्धिरात्मानं दग्धं मग्नि पुरः स्थितं ध्यायेद्धृत मंत्रेण कृत स्नान स्ततः सुधीः ॥ ३ ॥ इसके पश्चात विद्वान मंत्री अपने को अग्निमंडल के बीच में बैठा हुआ तथा अपने मल को जल जलते हुवे रं बीज से जला हुवा ध्यान करके अमृत मंत्र से स्नान किया हुआ ध्यान करे । सर्वशरीरे प्रणवः शीर्ष वानयनयो ह्रीं कारश्च घोणा यां च वकार सर्वत्र मुखे दकारः स्यात 9619595951959591 १४२ P59595959519 ॥ ४ ॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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