SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 150
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ SSPASTOTRICISTRISIO75 विधानुशासन 95TOISSISCTRICTSIDESI कंकःचंच: टंट: तंतः पंप: यंगःर: लंल: वंवःशंशःषषः संसःहंहः वरवः उंछः ठंठः थंथः फंफ: गंगः जंज: इंड: दंदः वःधं यःशःशः दंढः धंधःभभः इंट: गंणणः जनःमंमः एतानि के सराक्षराणि बाह्य त्रिमायया वेष्टटयं कुंभकेनांबुजोपरि प्रतिष्टापन मंत्रेण स्थापयेतां सरस्वतीं ॥३॥ फिर इस यंत्र को बाहर से हीं से तीन बार वेष्टन करके उस कमल के ऊपर कुंभक प्राणायाम से प्रतिष्ठापन के द्वारा सरस्वती देवी की स्थापना करें। . ॐ अमले विमले सर्व देवी भारती वागीश्वरी ज्वल टुपुषिणे स्वाहा ॐ प्रतिष्ठापन मंत्रः पाठांतरः ई अमले विमले सर्वज्ञे ह्रीं हंसः ॐ ह्रीं षद वद वाग्वादिनी भगवती सरस्वती श्री देवी भारती वागीश्वरी ज्वल वज्र मणि प्रभवे ॐ नमः स्वाहा। प्रतिष्ठापन मंत्र अर्चयन्परया भक्त्या गंध पुष्पाक्षतादिभिः विनयादि जमातेन हीं मंत्रेण सरस्वती ॥४॥ इसके पश्चात उस सरस्वती देवी का आदि में विनय () तथा अंत में नमः वाले ह्रीं मंत्र से अत्यंत भक्ति पूर्वक गंध पुष्प अक्षत आदि के द्वारा पूजन करे। ह्रीं श्री वद वद वाग्वादिनी नमः पूजा मंत्र सारख्या भौतिक चार्वाक मीमांसक दिगंबराः योगकास्ते पिदेवि त्वां प्यायंति ज्ञान हेतवे गमकत्वं कत्वं कवित्वं च वादित्वं वागमिता तथा हे भारती त्वत्प्रसादेन जायते भुवनै नणां ॥६॥ SSIRIDIOSEI5TOSISTSIC१४४ DISTRICKSTRISTRICTSTOST
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy