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S5I0ISIOSAD59150 विधानुशासन 95955050521505
अथ श्री पार्श्वनाथ स्य पाद पद्मौ प्रपूज्येत पंचोपचार विधिनामूलं यत्रं ततोचयेत्
॥२॥ श्री पार्श्वनाथ भगयान के चरण कमलों को पहले पंच उपचारों से पूजे और इसके पश्चात मूल यंत्र का पूजन करें।
सन्नियो पाश्र्वनाथ स्य मूलमंत्र ततो जपेत लक्षं तद्दशमांशं च होमं कुर्यात् स सिद्धयति
॥३॥ इसके पश्चात श्री पार्श्वनाथ भगवान के समीप बैठकर मूलमंत्र का एक लाख जप करके उसका दसयाँ भाग अर्थात दस हजार होम करने से मंत्र सिद्ध होता है।
प्रजप्तः सप्त कृत्वोयं प्रयुक्तः सर्वमा मयं विन विषं भयं दुष्टं गृहादींश्च विनाशेरात्
॥४॥ इसके पश्चात इसको सात बार जपने से ही सब रोग, विघ्न, विष , भय और दुष्ट ग्रहों को नष्ट करता
वशयेत पुरुषान राज्ञः स्त्रीश्च संस्तंभोदरीन
आत्मनश्च सदापदभ्यो विदधीता भिरक्षणं यह राजा पुरुष स्त्रियों को वश में करता है। शत्रुओं का स्तंभन करता है. और निरंतर अपनी रक्षा करता है।
ज्वर हरण मंत्रः
नामो नमो भगवते बीजस्याधो विलिख्य तस्याथः
न्यस्येच्च पार्श्वनाथो त्यों ह्रीं बीज वेष्ट्रांततः ॥१॥ ॐ नमो भगवते बीज के नीचे नाम लिखकर उसके नीचे श्री पार्श्वनाथाय लिख्खे और उसको क्रम से ॐ ह्रीं से वेष्टन करें।
वहि रष्टं दलं कमलं दलेषु शेषाक्षरापि मंत्रस्य, रक्षोहर दलयोस्तु द्वे द्वे मंत्राक्षरे दद्यात्
॥२॥ उसके बाहर आठ दल का कमल बनाकर उनमें मंत्र के शेष अक्षरों को लिखे रक्ष हर एक दलों में दो दो अक्षर दे देवें।
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