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SOSOTISTRISOISTOISOTE विधानुशासन 95015050STRASOISS
मां मी मूं मौं क्ष्मः एतैरहि पति विनुते मंत्र बीजेश नित्यं, हा हा करोग्र नादैज्वल दनल शिरवाकल्प दीर्घोकेशैः पिंगाक्ष ल्र्लोल जिव्है विषम विषधरा लं कृत स्तीक्ष्ण दंष्ट्र: भूत प्रेत पिशाचैरनय कृत महो पढ़वाद्ररक्षः ॥६॥
उझौं झं किनिनां सपादिहरमदंभिंदि सुद्धेद्धबुद्धे ग्लौं क्ष्मं ठं दिव्य जिव्हा गति मति कुपितं स्तंभने सं विधेहि फट फट फट सर्वरोग ग्रहमरणभयोच्चाटनं चैवं पावत्राय स्वाशेषदोषाद मरनर वरैत पादारविंदः
॥७॥
स्फ्रां स्फ्रीं स्फूं स्फ्रौं स्फः प्रवल वल फलं मंत्र बीजं जि नेन्द्र रां री 5ौं र एभि परम तरहितं पार्श्व देवादि देवं क्रां क्रीं क्रौं कः मेति ज ज ज ज ज जराज जरि कृत्य देवं धूं धूं धूं धूम वर्ण दुरित विहारित पाचमां रक्ष नित्यं ॥८॥
इत्थं मंत्राक्षरोत्थं वचन मनुपमं पाश्वनाथस्य नित्यं विद्वेषोच्चोटन स्तंभन जनवश कत पापरोगापनोदि प्रोत्सर्पज्जंगम स्थावर विषमविषध्वसनं चाय दीर्य
मारोग्यैवयादि भक्त्या स्मरति पठति यः स्तोति तस्येष्ट सिद्धि ॥९॥ पर नित्यं मंत्राक्षरों से निकला हुया उपमा रहित वचन श्री पार्श्वनाथ जी का स्तोत्र है। यह विद्वेषण उच्चाटन, स्तंभन और वशीकरण करता है। रोगों को नष्ट करता है ।बैठे हुवे जंगम और स्थावर कठिन विषों को नष्ट करता है। बड़ी आयु आरोग्य और ऐश्वर्य देता है। यहां तक कि जो इसको भक्ति पूर्वक पढ़ते हैं स्मरण करते हैं अथवा इससे स्तुति करते हैं उसकी इच्छा किये हुवे सब कार्य सिद्ध होते
संप्रदाय कम ज्ञेयं यंत्र मंत्रार्थ गर्भयोः दोन स्तोत्रयोः पाश्वः स्तूत्यश्चजिनोमतः
||१॥ उपरोक्त दोनों स्तोत्रों में संप्रगाय के क्रम से आये हुवे मंत्र-यंत्रों को स्वंय ही जानते हुये इन दोनों स्तोत्रों से भगवान की स्तुति करनी चाहिये।
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