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________________ 959529595 विधानुशासन PPPP 555 अर्थ वाले पंच भूतादि यंत्र के संग्रह और मंत्रों केद्वारा पुरुष पहिले की हुई सेवा से मंत्रो के अनुष्ठानों से सिद्ध करके अपने पास मंत्रों का पिटारा बनाकर समस्त संसार में निर्मल कीर्ति को प्राप्त करता है । पार्श्वनाथ जी का दूसरा स्तोत्र श्री मद्देवेन्द्र वृंदारक मुकुट मणि ज्योतिषां चक्रवालै व्यालिढि पाद पीठं शठ कमठ कृतोपद्रवा र्वाधितस्य लोकालोकावभासि स्फुरदुरु विमलज्ञान सद्दीप्रदीपः प्रध्यस्त ध्वांत जालः सविता सुखं माधोनि ॥१॥ ॐ ह्रां ह्रीं हूं ह्रौं ह्रः विभास्वन्मरकतमणि भाक्रांत मूर्त्तेहि वं मंहं सं तं बीज मंत्रैः कृत सकल जगत क्षेम रक्षोरुवक्षः क्षीं क्षीं क्षं क्षे समस्त क्षिति तल महित ज्योति क्ष क्ष क्ष क्ष क्षः क्षिप्त बीजात्मक सकल तनोनः सदा पार्श्वनाथः || R || ह्रीं कारं रेफ युक्तं रदेव सं सं प्रयुक्तं ह्रीं क्लीं ब्लूं द्रां द्रीं सरेफं विद्यदमल कलापंचकोद्भासि हूं हूं यूं यूं धूम्र वर्णै रविलमिह जगन्मेवि देह्यां मुवश्यं मंत्र पठतं त्रिजगदधिपते पातु मां पार्श्व नित्यं (पार्श्वमां रक्षः रक्षः) ॥३ ॥ ॐ ह्रीं क्रों सर्व वश्यं कुरू कुरू सरसं क्रामणं तिष्ट तिष्ट हूं हूं हूं रक्ष रक्ष प्रबल बल महाभैरवाराति भीतं द्रां द्रीं तूं द्रावय हन हन फट फट वषट बंध बंध: स्वाहा मंत्र पठतं त्रि जगदधि पते पार्श्वमां रक्ष नित्यं || X || हंसः इवीं क्ष्वींस हंसः कुवलय कलि तैर कितांग प्रसून वं व्हः पक्षि हं हं हर हर हर हु पक्षि पः पक्षि कोपं वं झं हं संभवं सः सर सर सर सुंसः सुदा बीज मंत्रः स्त्राय स्वस्थावरादि प्रवल विष मुखं हारिभिः पार्श्वनाथैः ॥ ५ ॥ 2695959059 १३४ PS959595959595
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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