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________________ QಥಳಥT RಕGERE NEWS झौंकारं रांत युक्त शिरिव पवन पुर स्थापितं नाम गर्भ पश्यंतं यत्प्रभावाद्विजहति पुरुषं योगिनी मुद्रया द्राग। ॐ ह्रां ग्रां हुं फट ग्राक्षर जपित रावस्ताडितं सास्व गंधं शाकिन्याः श्री द्रं नंदि प्रथित गति रसौ पातुमां पार्श्वनाथः ८॥ शंत (ल) से युक्त झौं को अग्निमंडल और वायुमंडल के बीच में स्थापित करके सबके बीच में नाम लिखे । उसको दिखलाने और योगिनी मुद्रा से हां ग्रां हुं फट मंत्र को जौ और अश्वगंध पर पढ़कर मारने से जिसके प्रभाव से शाकिच्या पुध को छोड़ देती हैं। वह इन्द्रों के आनंद से समवशरण आदि रूप प्रसिद्ध गति वाले अथवा इन्द्रनंदि आचार्य से की हुई प्रसिद्ध ज्ञान रूपी स्तुति वाले भगवान पार्श्वनाथ मेरी रक्षा करें। कीद्दशो सौ मां पातु पार्श्वनाथः इन्द्र नंदि प्रथित गतिः इंद्राणं नंदो महोत्सवो विद्यते -यस्यां सा इन्द्रनंदिनी प्रथिता प्रख्याता गतिः समवशरणा दियात्रा यस्य सः अत्र भगवतः स्तुति रूपेण करया इन्द्र नदि ति आत्म नाम प्रकाशितं कीद्दश वत्प्रभाव द्विजहति स्तुति कतारम्यजंति काःशाकिन्यः कं पुरुषं कया योगिनी मुद्रया कथं द्राक शीयं किंविशिष्ट ताडितं कैः ॐ हंसः वक्षः शल्यू झों हों यां हुं फट मंत्रः ॐझौंझौझौं शाकिनी नां निग्रहं कुरूहुं फट ग्राक्षर जपित यवै कथं यथा भवति साऽश्वगंधं यथा भवति अश्वगंधा समिन्विते यंदै रित्यर्थः किं कुंर्वतं पुरुषं पश्यं अवलोक्वंतं कं झौंकारं उद्धाधोरेफ युत जकाराव स्थिता ॐकारः कथं भूतंरातं युक्तं रस्टातों रांतो लकारः तेन युक्तं समिन्वितं पुनः कीदृशं शिरिव पवन पुर: स्थापितं अग्नि वायु मंडल मध्य न्यस्तं कथं भूतं च नाम गर्भ दष्टस्य नाम गर्भेटास्य तत नाम गर्भ इति इदं यंत्रं कुठ्ये फलके वा रवटिकया लिरिवत्वा पूजियित्वा दर्शनीय मित्यैव मधि गतार्थ पंच भूतादि यंत्राणां संग्रहमंत्रवत् पूर्वसेवा कृत्वा कृत मंत्रानुष्टानं सिद्ध मंत्र रत्न करड़ी जगद् विशद कीर्तिर्भवतीति ॥ भगवान पार्श्वनाय के प्रभाव से शाकिनीपुरूष को छोड़ देती है।इब उनको छोड़ने का प्रकार बतलाते हैं। योगिनी मुद्रा से जो अश्वगंध के ऊपर निम्नलिखित मंत्र को पढ़कर इनसे शाकिनी से ग्रहीत पुरुष को मारे मंत्र यह है। ॐ हंसः वक्ष मल्व्यू झौं हौं या हुं फुट ॐ झौ झौं झौं शाकिनी नाम निग्रहे कुरू कुरू हुं फट् ॥ फिर उसको यह मंत्र दिखलावे ल तथा ऊपर और नीचे रेफ युक्त झौं के चारों तरफ अग्नि मंडल बनाये, उसके चारों तरफ वायुमंडल बनावे और यंत्र के ठीक बीच में इंसे हुए का नाम लिखे। इस यंत्र को स्वाड़िया से दीवार पर या तख्ती पर लिखकर पूजन करके दिखलावे | इसप्रकार जाने हुए CISI52I5TOISSIOS १३३ PISIOTSIDISIOISO15015015
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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