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________________ 2525252 P50 विधानुशासन दूसरा अध्याय अथातः सर्वमंत्राणां भेदा अंगानि च क्रमात् पूर्वशास्त्रानुसारेण व्यावति मयाधुना ॥ १ ॥ अब पूर्व शास्त्रों के अनुसार क्रम से सब मंत्रों के भेद और अंगों का वर्णन किया जाता है । स्यमंत्र्यंते गुप्तं भाष्यंते मंत्र विद्भिरिति मंत्राः अन्वर्थ मंत्र संज्ञास्ते ज्ञातव्याः विबुधैः सदा すぐりですやすです || 3 || जो सलाह किये जावे अथवा मंत्र के जानने वाले से गुप्त रूप से कहा जावे वह मंत्र कहलाता है। यह सदा ही मंत्र का इस शब्द की व्युत्पत्ति के अनुसार अर्थ है । अकारादि हकारंतावणमंत्राः प्रकीर्तिताः सर्वज्ञैरसहाया वा संयुक्ता वा परस्परं ॥ ३ ॥ अकार से हकार तक के स्वतंत्र असहाय अथवा परस्पर मिले हुवे वर्ण (अक्षर) मंत्र कहलाते हैं । स्वरोष्माणो द्विजाः श्वेता अंबुमंडल संस्थिताः अंतस्था भूभुजो रक्ता स्तेजोमंडलसंस्थिता ॥ ४ ॥ स्वर अकारादि १६ स्वर और उष्म ( श ष स ह ) द्विज, ब्राह्मण और श्वेत (सफेद) कहलाते हैं । यह अंबु (जल) मंडल में स्थित हैं और अंतस्थ ( य र ल व ) भूभुज (क्षत्रिय) और रक्त कहलाते हैं यह अग्नि मंडल में स्थित है। अवर्ग शवर्गो कवर्ग पवर्गों शुप्तवैश्यान्वयो पीतौ पृथ्वीमंडल भागिनी दुतूकृष्णत्विषौ शुद्रौवायुमंडल संस्थितौ ॥ ५ ॥ अवर्ग शवर्ग कवर्ग प्रवर्ग शुप्त वैश्य पीतवर्ण के हैं। और पृथ्वी मंडल में स्थित हैं टवर्ग और तवर्ग कृष्ण कांति वाले और शूद्र वंश वाले तथा वायु मंडल में स्थित हैं । अ आ इ ई उ ऊ ऋ ऋ लृ लृ ए ऐ ओ औ अं अः, श ष स ह क ख ग घ ङ, प फ ब भ म शुप्त वैश्य वंश वाले पीले रंग के हैं। और पृथ्वी मंडल में रहते हैं । टठ ड ढ ण त थ द ध न कृष्ण रंग के शुद्र और वायुमंडल में रहते हैं । 9595959 PSPSPA PSP595 25
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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