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________________ 250/50/50 विद्या ॥ ६ ॥ हूंकार व्याप्त संधिं मरुदवनि पुरांतर्गत धूमंधूमं हां स्वाहा मंत्रिता मोहत मुख हृदयं वायुना धूयमानं पद्मामूर्द्ध स्फटाकारित वर कर सन्मुद्रयविशं मुच्चै दष्टं यस्य स्तुति ग्रहयति स भगवान पातु मां पार्श्वनाथ हँसे हुए पुरुष के शरीर के जोड़ो में हूँकार को भरकर फिर उसको वायुमंडल और पृथ्वीमंडल के बीच में विठलाकर धुएँ के समान धूम्रवर्ण के जल को हा स्वाहा आदि मंत्र से मंत्रित करके उसके मुख और हृदय पर डाले, फिर उसके शरीर को वायु से कंपावे। इस प्रकार पद्मावती देवी के सिर के फण के समान आकार वाली दाहिने हाथ की मुद्रा से आवेशन करने वाले भगवान पार्श्वनाथजी मेरी रक्षा करें। मां पातु भगवान पार्श्वनाथः कीद्दशों भगवान यस्य स्तुति ग्रहयति कं आवेशं कं ग्राहयति दष्टां कथं भूतं हूकारं व्याप्त संधि हूंकारेण व्याप्ताः संघयो यस्य तं पुनः कथं भूतं मरु दवनि पुरांतरगतं पवन भूमंडलं मध्यगतं धूम धूमं धूम वद्धूमं धूमलं किं विशिष्टं हां स्वाहा मंत्रितां भो हत मुख हृदयं हां स्वाहा मंत्रः क्षिप स्वाहा अयं मंत्र अनेन मंत्रितं यदं मंः पानीयं तेन हते मुख हृदय यस्य तां आधूयमान कप्यमानं केन वायुना कया कृत्वा आवेशं ग्रहयति पद्मा मूर्द्धस्फुटाकारित वर कर सन्मुद्रया वर कर सन्मुद्रा दक्षिण हस्त शोभन मुद्रा पद्मा पद्मावती तस्या मूर्द्धि मस्तके स्फुटाः फणाः तासामा कारः संजातो यस्यां वरकर सन्मुद्रायां सा तथा सआत्मानः पद्मावती सद्ध्यानेन त्यर्थः एवं सद्यो दष्टंवा कृत्वा आवेशनानां विद्य कथा कथनादि चोटा कम्र्म्मकारयित्वा देवि पद्मावति स्व स्थानं गच्छं गच्छ जः जः जः इति मंत्रेण विसर्जन करणियमिति ॥ उससमय से हँसा हुवा पुरूष चैतन्य सा होकर बैठ जाता है और इसप्रकार से बात करती है मानो वह उस पुरुष को हँसने वाला नाग हो भूतप्रेत आदि के विषय में भी जगाना या आवेशन इसी को कहते हैं | जगाने के वास्ते हँसे हुये सब अंगों के जोड़ों में हुं बीज का न्यास करे फिर उसको वायुमंडल - पृथ्वी मंडल के बीच में बैठाएं। फिर धुएँ के सामान धूम्रवर्ण जल को क्षिप ॐ स्वाहा मंत्र से मंत्रित करके उसके छींटे उसके मुख और हृदय पर मारे और उसको वायु से कंपावे। फिर पद्मावती का ध्यान करे फिर अनेक प्रकार की कथायें कहकर अपने योग्य कर्म करके विसर्जन करे ! विसर्जन मंत्र : देवी पद्मावती स्व स्थानं गच्छ गच्छ जः जः जः इदानीं परंण स्तंभे कृते तद्विधा छेदनेनानुविद्धां स्तुतिमाह १३० 9595959599 9595959595 I
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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