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________________ CSIRIDDISTRISTRA विधानुशासन DISTRISTRISIOTSIRIDICTI यदि दूसरे ने स्तंभन करा दिया हो तो दूसरे की विद्या का छेदन करके वास्ते स्तुति का वर्णन करते हैं। वह्नि ऊवी व्योम वारि स्व सन युत यकारैः स्त्रिभिः पंच टांत प्रांतैः हूँ फट समेतैपित रवटिकया नामित टांता वतांते वजै विद्रश्चतुर्भिः कुलिशविवर दत्तानले सप्त कृत्वः छिन्ने य त्प्रभावात नश्यति विकृति रसौ पातुमा पार्श्वनाथ ॥७॥ वह्नि (3)ऊर्यि (क्षि) व्योम (हा) वारि (प) श्वसन (स्वा) तीन प पांच ठ प्रान्त (स्फ्रा स्फ्री स्प॑ स्पों स्पः) हुं और फट सहित मंत्र को खडिया से सात बार जप कर और मंत्री के नाम को टांत (ठ) से धेरकर उसको चार वजों से बांध देवें तथा वजों के अंतराल में अनल (1) लिखकर अपने प्रभाव से विकार का नाश करने वाले भगवान पार्श्वनाथ जी मेरी रक्षा करें। असौ पार्श्वनाथौ मां पातुयास्टा प्राभवं प्रभुत्वंयत्प्रभावं तस्मात यत्प्राभावात्नश्यति का विकृति: मंत्र शक्तरन्यथा भाव लक्षणा क्रसाति नाम्रि पर मंत्रिणोभिद्याने कथं भूते टांता वृतांतै टांत: ठकारः तेना वृत्तं अंतं समीपे देशो यस्य तत टांता वृतांतं तस्मिन पुनःकथं भूते विहेकै:वज्जैःकतिभिःचतुर्भिःपुनःकीदशेः कुलिश विवर दत्तानले कुलिश विवरेषु वजांतरालेषुदत्तःअनले उकारो टास्य तत तरिमन कथं भूतोछिन्नो कथं सप्त कत्वः सप्रवारान् जपति रवटिकया कैः वह्नि वीं व्योम वारि श्वसन युतःयकार:वहिःउकारः उवी क्षिकारःव्योम हाकार:वारिपकारः श्वसन स्वाकारः तैर्युता श्वते यकारा श्वतैः कतिभि त्रिभिः पुनः कथं भूतैः पंच टांत प्रांत ८ ठकार पंच कान्वितै पुनरपि कीद्दशै हुं फट समैतैः क्षिश प स्वाय ठ ठ ठ स्फ्रा स्फ्री स्फ्रें स्फ्रौं स्फू: हुं फट ।। अनेन मंत्रेण सप्तवार जपति रवटिकया सप्तवारं विलिख्यते गंधाक्षत पुष्प दीप धूप पूजिते सप्तवार छिन्ने च नाम्नी त्यर्थः एवम श्टां विद्यापि गति गादि स्तंभे योजनीटोति (इदानिं दष्टस्य शाकिनी संक्राति निग्रह गर्भास्तुति माहः) अब इँसे हुवे को शाकिनी की संक्राति के निग्रह स्वरूप की स्तुति को कहते हैं। भगवान पार्श्वनाय के प्रभाव से मंत्र शक्ति से किसी दूसरे प्रकार का प्राप्त हुवा विकार तुरन्त ही नष्ट हो जाता है। अब इसका उपाय लिखा जाता है। पहिले विकार पहचानने वाले दूसरे मंत्री के नाम को 'ह' बीज के बीच में लिखकर फिर उसको चार वजों से बांध दे। उन यजों के अंतराल में 'ॐ' बीज लिखकर मंत्र को पूर्ण करे फिर खड़िया से यह मंत्र सात बार जपे। उँ क्षि हा प स्वाय स्वाय स्वाय स्याय ठः ठः ठः ठः ठः स्फ्रा स्फ्री स्यूं स्फ्रौं स्फ्रः हुं फट इस मंत्र को जपकर सात बार खड़िया से उस नाम वाले मंत्र को लिखे सातों बार पूर्ण होने पर उसका गंध अक्षत पुष्पदीप और धूप से पूजन करें। इसप्रकार यह विद्याकी गति गर्भ आदि स्तंभन में लगाई जाती है। SSOSISISTRISTRISTOTRA १३१ PISPECISIOTSIRIDIDISTRI
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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