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SHRIERSICASPIERE विधानुशासन 95050512505DIS
ॐ नमो भगवते पार्थ चंद्राय स्वाहा पक्षि हंसः पक्षिटाः पक्षियः पक्षियः
हःह: प्लावट प्लावया विषं हर हर स्वाहेत्युपदेश मंत्राक्षरै रित्यर्थः।। भगवान पार्श्वनाथजी स्थावर तथा जंगम (अर्थात् दोनों प्रकार के विष को नष्ट करते हैं। (श्रृंगीको (मगरमच्छ) और वत्सनाम (मीठा तेलिया) आदि के विषों को स्थावर विष तथा सांप बिच्छू आदि के विषों को जंगम या चर विष कहते हैं । पहिले ई स्थाहा पक्षी बीजों का मस्तक आदि कर न्यास करे। फिर नीच पारी में सुधा बीज याकार और ऊपर साक में सोम बीज झ्वींकार का न्यास करे। दोनों पायों में पाँचो ह बीजों का न्यास करें। फिर हंझं इवीं क्ष्वी हंसः जलः (प) पृथ्वी (क्षि) विसर्ग सहित पांच पद यः यः यः हः हः प्लावय प्लावय विषं हर हर स्वाहा। इस दिव्य मंत्र से नाशिका में ध्यान करता हुआ अमृत टपकाये नाशिका में ध्यान करने का अमृत मंत्र यह है। हे झंडची क्ष्वी हंसः पक्षिय पक्षियः पक्षियः पक्षियाः हः हःप्लावर प्लावय विषं हर
हर स्वाहा उपदेश मंत्र यह है।
ॐ नमो भगवते पार्धचंद्राय ॐ स्वाहा पक्षिः हंसः पक्षिय पक्षिय पक्षिय हह प्लावर प्लावा विष हर हर स्वाहा।
इदानीं मंत्रवाद प्रभाव स्थापनार्थ वाद्य कर्म गर्भितां स्तुति माहः । अब मंत्र के प्रभाव को स्थापन करने के वास्ते वाजे के कर्म आवेशन कर्म के गर्भवाली स्तुति को कहते हैं। SSCISIOSITISTRISTRISTRA १२९ PSCISCCSRISOTSIDESI