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________________ GENEWEST REQRQಡ ಬಲಪಡಿತರಣಾ भगवान पार्श्वनाथ के नाम के स्तोत्र मंत्र इच्छानुसार गति गर्भ आदि सभी प्रकार का स्तंभन करते हैं। उपाय यह है नाम को हटृ के संपट में लिखे उसके चारों तरफदो पृथ्वी मंडलों का संपुट बनावें। वह पृथ्वी मंडल वजों के अंतराल में उँ क्ष बीजों से व्याप्त हो जाम भी पूर्ण चन्द्र बोज ठकार के बीच में हो यह पृथ्वीमंडल हरताल आदि पीले ब्रह्मों से लिखना चाहिये । फिर यह मंडल चारों वजों से से घिरे हुए हों। इस यंत्र की चींटी या मकड़ी आदि दुष्ट जन्तुओं के जख्मों में भी लगा सकते हैं इसको मुख बृद्धि गति गर्भ और दिव्य क्रोध आदि का स्तंभन करने की इच्छा से दो वस्त्र दो तखती अथवा दो भोजपत्रों पर लिखकर एक दूसरे की और मुँह किये हुवे पृथ्वी पर रखकर ऊपर से शिला रख दे इस यंत्र को यंत्र के अन्दर के मंत्र क्षम्ल्यूँ क्षःक्ष :क्षः ठः ठः ठः स्वाहा इस मंत्र से लिखें। ॐ स्वाहा पक्षि बीजैरघ उपरिसुधा सोमवद्भि दिपाश्वविकाशैः सध्यान नासामृत विभव युतैर्दिव्यमंत्रैश्च हं झं वीं क्ष्वी हंसः पयोभूम्यपगत स विसर्गोलसद्य त्रयाः पूतात्माऽपासित स्थावर चर गरलः पातु मां पाईनाथ: ॐ स्याहा पक्षी बीजों से नीचे और ऊपर सुधा देवी तथा सोम झ्वीं बीजों से दोनों करवटों की और आकाश (ह) बीजों से अच्छे ध्यान के द्वारा नाशिका में उत्पन्न किये हुए अमृत के ऐचर्य से युक्त हं झं इवीं क्ष्वी हंसः पयः (प) भूमि (क्षि) विसर्ग सहित प आदि बीजों के द्वारा पवित्र आत्मा वाले स्थायर तथा जंगम विष को नष्ट करने वाले भगवान पार्श्वनाथ जी मेरी रक्षा करें। मां पातु पार्श्वनाथः किं विशिष्टःपूतात्माऽपासित स्थावर चर गरलःस्थावरगरलानि स्थावरविषाणि अंगीकवत्सनामादीनि चरगरलानिजंगमविषाणिसर्प वृश्चकादि जानितानि पूतःपवित्रित आत्मायस्यःसःपूतात्मादष्टःतस्मात्दष्टात अपासितानि नोदितानि स्थावर चर गरलानि रोनसः कै कत्या पूतात्मा ॐ स्याहा पक्षि बीजैः मस्तकादिन्यस्त प्रणवादि बीजै:कीदशैःअधःउपरिसुधासोमवद्भिसुधाध्वींकार: सोमो इवीकारः अध: उपरिच तो विद्यते येषांतैः पाद तले स्वीकार उपरि मस्तके श्वींकार सहित रित्यर्थः पुनः किं विशिष्टः द्वि पार्श्वकाशै द्वि पार्श्वयोर्हकार पंचकान्वितैः कै: कैः कृत्वा अपासित स्थावर चर गरलः दिव्य मंत्रै कै स्तैःहं झं इची क्ष्वी हंसः पयोभूम्युपगतसविसरगोलसरात्रयायैः पयःपकार:भूमिःक्षिकारः उपगतंसमीपगतंसह विसर्गणवर्ततेइतिसविसग्गैलि सद्य त्रयं च तैः पदे आये येषां हः हः प्लावट प्लावल विषं हर हर स्वाहेति उपदेश वर्णातैः कीदृशैः सध्यान नासामृतं विभवद्युत:नायायानिर्गतं अमृतं नासामृतं सध्यानेन कल्पितं नासामृत स ध्यानासामृतं तस्य विभवो माहात्म्यं तेन युतैः रीति हं झंइची क्ष्वी हंसः पक्षि य यय हा हा हा प्लावर प्लावर प्लावय विषं हर हर स्वाहेति 505DISC5PISODE १२८ PIECISIOISODSICISIONSCISI
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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