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________________ SHSRISIOHIDISTRI52 विघापुसासन 9I52RSIOSIS50150151 करके उन तीनों मंडलों के बीच में इसे हुवे पुरूष को घुटने ऊपर को करके बिठा देयें ,और स्वयं पूर्वदिशा की तरफ मुख करके स्तोभन करे। फिर इसकी भी पहिले कहे हुवे रक्षा यंत्र से रक्षा करे। इदानी विपक्ष मंत्र वादि प्रति गृहीत दष्टस्य गरल स्थंभनाय स्तभर गर्भितः स्तुति माल अब विरोधी मंजवादी से रोकेहए हँसे हुए पुरूष के विष को स्तभंग करने के लिए स्तभंन गर्भित स्तुति कहते हैं। नाम हल्वयूँकार सत्संपुट गतमवनी संपटस्थं प्रदीपैः कूटैर्वजांतरालस्थिति भिरूपचितं पूर्णचंद्रा वृतागैः पीतं भूमंडलांतः स्थितमुरुकुलिशैः पीडितं स्तभं मिष्टं यन्नाम स्तोत्र मंत्रतैर्जनयति सततं पातुमां पार्श्वनाथ नाम हल्वयूं के संपुट के बीच में रखकर उसके चारों तरफ पृथ्वी मंडल का सम्पुट बनावे । वह वजों के अंतराल में प्रदीप (5) और कूट (क्ष) से व्याप्त हो नाम पूर्णचन्द्र बीज ठ से घिरा हुआ हो पीला पृथ्वी मंडल चार वजों से भी बिंधा हुआ हो जिनके नाम का मंत्रो से इसप्रकार स्तंभन होता है वह पार्श्वनाथ भगवान मेरी रक्षा करे। समां पातुपार्श्वनाथःयस्य नामयन्नामजनयतिसंपादयतिकंस्तंभनं किंविशिष्टं इष्टंगतिःगर्भादिकां कैकल्पितंयन्नाम स्तोत्र मंत्रैःकिं विशिष्टं सत्नाम हल्गुंकार संत्संपुटगतं नाम समिन्वितौ हल्यूकारो नाम हल्च्यूकारौ तयोः संपुट मत नामानुविद्ध हल्ब्यूँकार संपुटच रूपेण गत मित्यर्थः किं विशिष्टं अवनि संपुटस्थं भूमंडलसंपुट स्थितं पुनः कीदृशं उपचितं व्याप्तंकै कूटै सकारैः कीदृशैः प्रदीप प्रकृष्ट आदि तेज स्थितो दीपः उकारोयेषांतेः कीदृशैःश्चतै वजांतराल स्थिति भिः वजांतरालेषु स्थितिर्येषांतैः किं विशिष्टं नाम पूर्ण चंद्रावृतांगं ठकार वेष्टितं मित्यर्थः पुनः कीदृशं पीतं तालकादि पीत द्रव्यलिरिवतं पुनः किं विशिष्टं भूमंडली स्थितं कीदृशं च पीडितं विद्धं के उरू कुलिशैचतुर्भि महा वझै रित्यर्थः इदं स्तंभन यंत्रं लूतादि दुष्ट वृणे ष्यपि योजनीयं तथा मुरव मति गति गर्भ दिव्य क्रोधादि काश्च स्तंभयतु कामेन पटयोःफलकयो भूर्जयो विलिरिवत्वा सपुटितं भूमौ निक्षिपं उपरि शिलामायाय प्रणादि स्वाहात यत्रांतर्गत मंत्रेण ॐक्ष्ल्यू वक्षःसः ठः ठः ठः स्वाहा । . इति मंत्र CASCISCTICTIOTICIDCA १२७ PASCTRICIRCIACISCESCIEN
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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