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________________ eopor विधानुशासन 959595959 टीका की शो सौ भगवान मां पातु यस्यामिनुति स्तुतिर्य्यद भिनुतिः विदध्यात कुर्यात् कं स्तोभं पूर्वदष्टस्य मंत्र वशात्पालनं स्तोभः तं कथं सद्यः शीघ्रं कस्य पुंसः पुरुषस्य कथं भूतस्य दष्टस्य पुनः कीद्रशस्य वायव्याशा मुखस्य पवन दिक् अभि मुखस्य पुनः किं विशिष्टस्य त्रिपुर चलय मध्य स्थितस्य स्व स्व वर्ण समन्विताऽग्नि पवन भूमंडलांतर गतस्य पुनः किं विशिष्टस्य ऊर्द्ध जानोः ऊर्ध्व स्त्येत्यर्थ पुनरपि कीदृशस्य ज्वाला माला कुलस्य अग्नि शिखा कलाप व्याप्तस्य ज्वलन युत ललाटस्य ललाटन्यस्त प्रणवस्य रेफा क्रांतांग यष्टेः र वर्ण व्याप्त शरीरस्य कीदृशस्य आहंस्तस्य ताडितस्य केन घटाद्युत शरदंडेल हूंकार कांडेन हूं यय: उं को उ वो उ वो उ अथवानेन मंत्रेण क हृदि हृदये इति पवित्रित भूमौ स्वोचित द्रव्यैः स्व बीजान्वितऽग्नि मंडलं तद् वाह्ये चतुर्द्दिशा दत्त स्वाकार कोण न्यस्त कारं पवन मंडलं तद्वाह्ये चतुदृिशां दत्तक्षीकारं कोणन्यस्त लकारं भूमिमंडलं चे विलिख्यंपुष्प धूप अक्षतादिभिः पूजयित्वा व स्का सुगंधद्वयानुलेपल पुष्पधूप धौत वस्त्र पवित्रितागे पुराण दष्ट स्तन मंडल त्रयस्य मध्ये पूर्वादिगाभि मुखेन उध्वीकृत: स्तोभः ग्राहयितव्यः ततोऽस्यापि पूर्वोक्त रक्षायंत्र कर्णाय मिति । टीका: भगवान पार्श्वनाथ जी की स्तुति डँसे हुवे पुरुष का स्तोभन करती है। मंत्र के द्वारा रक्षा करने को स्तोभन कहते हैं। अब हँसे हुवे पुरुष के स्तोभन करने का उपाय लिखा जाता है। हँसे हुवे पुरुष को तीन मंडलों के बीच में पश्चिम उत्तर के कोण की तरफ मुख करके बिठा दिया जावे । वह तीनों मंडलों अग्निमंडल - वायुमंडल तथा पृथ्वीमंडल में हो और अपने अपने बीजों से युक्त हो हँसा हुआ पुरुष उसके अन्दर पश्चिमोत्तर कोण की और ऊपर को घूँटने किये हुए अर्थात् उकडू बैठा हुआ हो । अग्निमंडल के बीच बैठने के कारण वह इंसा हुआ पुरुष अग्नि से पूर्ण रूप से भरा हुआ तो होगा ही किन्तु उसके मस्तक में भी ॐ कार को ध्यान पूर्वक स्थापित करे और उसके सारे शरीर में रं बीज स्थापित करे। इतनी क्रिया करने के पश्चात उस डँसे हुए के हृदय में 'हूं य य' इस मंत्र से या ॐ को ॐ खो ॐ चों ॐ छों" इस मंत्र से ताड़न करे। मंडलों को पवित्र की हुई पृथ्वी पर अपने योग्य द्रव्यों से इसप्रकार बनावे कि बीच में अपने बीजों सहित अग्नि मंडल हो उसके बाहर चारों दिशाओं में स्वा बीज तथा कोणेभिं यं बीज लगाकर बायुमंडल बनावे | उसके बाहर चारों दिशाओं में क्षि बीज तथा कोणों में लं बीज को लगाकर पृथ्वी मंडल बनावे इन मंडलों को बनाकर उनकी धूप पुष्प अक्षत आदि से पूजा करें। फिर स्नान करके सुगंधित द्रव्य लगाकर तथा शरीर में लेप करके पुष्प धूप और घुले हुए वस्त्र पहनकर अपने शरीर को पवित्र CPからたらこちら 324 らですぐりですでらでらでも
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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