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________________ esesPSPSS विधानुशासन 9559/5059595 कारेणेति एव मिदं सर्वरक्षा यंत्र कुकुंम कपूरादि शुभद्रव्यैलिखितं नित्यं पूजनीयं तथा दष्टेन स्वस्थेन च विद्या हृन्मणि कृत्य बाहौ धरर्णायमिति ॥ टीका : बीच में साधक का नाम लिखकर उसके चारों तरफ इस मंत्र का वलय बनावे हैं नमो भगवते पार्श्वचंद्राय ह्रूं क्षं ठः नमः स्वाहा । इस वलय मंत्र के पश्चात सोलह दल का कमल बनाकर उसमें सोलह यर लिखें। इसके पश्चात अपना अपनी दिशाओं के योग्य फन मणियां और हृदय मणियां को लिखे दक्षिण दिशा के चारों दलों में अग्नि मंडल संबंधी अनंत और कुलिक की फणमणि और हृदय मणियों को लिखे पश्चिम दिशा के चारों दलों में वायुमंडल संबंधी तक्षक और महापद्म की फणामणि और हृदयमणि को लिखे । उत्तरदिशा के चारों दलों में वरुण मंडल संबंधी कर्कोटक और पद्मनाग की फण मणि और हृदयमणियों को लिखे । इसके पश्चात वलय को ॐ यं ॐ रां से भर देवें इसके आकाश मंडल संबंधी जय विजय नागों की हृदय मणियों का भी व्याख्यायन किया गया क्योंकि इनकी फण मणियों का समावेश पहले ही अंदर के मंत्र में कर लिया गया है। इसके पश्चात तीन बार माया बीज ह्रीं से वेष्टित करके क्रौं का निरोध करे। इस सर्वरक्षा यंत्र को कुंकुम कपूर आदि शुभ द्रव्यों से लिखकर इसकी नित्य पूजा करें। डँसे हुवे और स्वस्थ दोनों प्रकार के ही मनुष्यों को फणमणियां और हृदय मणियों के इस यंत्र को हाथ में पहनना चाहिए। P4 ₹ ₹₹ र₹₹ 11 DO X 959595959519594 १२४ P595959595959 X bd
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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