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________________ 2525252525U3 faiqqeta BADI OBPSPS अग्निमंडल के स्वामी इन्द्र अनंत और कुलिक नाग होते हैं। यह ब्राह्मण, सफेद रंग वाले फूलों की सी गंध वाले, सिर पर स्वस्तिक के चिन्ह वाले और अग्नि विष युक्त होते हैं। वायुमंडल के स्वामी तक्षक और महापद्मानाग होते हैं। यह वैश्य पीले रंग के घी की गंध वाले, सिर पर बिन्दु के चिन्ह वाले और वायु विष युक्त होते हैं। आकाश मंडल के स्वामी जय और विजय नांग होते हैं। यह देव कुल के आकाश वर्णवाले अणियों के चिन्ह वाले तथा अदृष्ट विष से युक्त होते हैं। अब इन नागों की मस्तक मणियों का वर्णन किया जाता है। वासुकि की फणमणि गं शंखपाल की धं कर्कोटक की जी पद्म की इवीं अनंत की कों कुलिक की खों तक्षक की चों महा पद्म की छों जय की हूं और विजय की फण मणि क्षं होती है। 'ईं वांयां क्षां आं लां मां रां ॐ" और ह्रीं यह दस बीज इन नागों के हृदय की मणिया हैं। इसके अतिरिक्त 'स्वां लां ह्रीं सरसुंसः' और हरहुहे:' तीनों कवच हैं। इन सब बातों से युक्त यंत्र ह्रीं नाग विद्या में कार्यकारी होते हैं यद्यपि यह सकलीकरण की विधि सामान्य रूप से कही गई है तथापि विशेष रूप से भी व्याख्यान किया जाता है। बायें हाथ के अंगूठे आदि उंगिलयों में क्षिप उ स्वाहा और हा ॐ स्वा पक्षि इन पांचों बीजों को भूतों के सीधे और उलटे क्रम से नाग से चिंतित पूर्वोक्त मंडलों सहित लगाये। फिर उंगलियों के अग्रभाग में पांचों शून्य बीज लगावे उंगलियों के पोरों में स्वां लां ह्रीं इन सब रज और तम बीजों को तथा सरसुंसः और हरहुंहः आठो अक्षरों के करतल मंत्र को करतल अर्थात् हथेली से स्थापित करके फिर आठबार क्षि बीज का उच्चारण करे। पैरों से घुटनों तक पृथ्वी मंडल को स्थापित करके उसके दोनों नागों को पैरों के नूपूर बनाकर अंगूठे से स्पर्श करे । फिर तेरह बार पं बीज का उच्चारण करके घुटनों से नाभि तक जल मंडल को स्थापित करके उसके दोनों नागों को कटिसूत्र कमर की कनगती ( तगड़ी) मान कर उनके अंगूठे के पास की तर्जनी उंगुली से छूये। फिर आठ बार उ को बोलकर नाभि से गर्दन तक अग्निमंडल को स्थापित करके उसके दोनों नागों को हाथों का आभूषण मानकर उनको मध्यम उंगुली से छूवे । अर्थात् स्पर्श करे । फिर चार बार स्या बीज को बोलकर गर्दन से मस्तक तक वायु मंडल को स्थापित करके उसके दोनों नागों को काटने का आभूषण मानकर उनको अनामिका अंगुली से स्पर्श कर फिर चार बार हा बीज को बोलकर मस्तक से कपाल तक आकाश मंडल को स्थापित करके उसके दोनों नागों को भुकुट रूप आभूषण मानकर उनको कनिष्टा उंगुली से स्पर्श करें। फिर ई हूं बीज को सिर में उ क्षूं बीज को हृदय में उं रं बीज को दोनों स्तनों क्षिं बीज को हृदय में उप बीज को मुख में उं बीज को सिर में हैं वं बीज को दोनों नेत्रों में हैं स्वा बीज को बुद्धि सहित तीनों नेत्रों में फिर उ का सिर में और विसर्ग सहित हकार अर्थात हः का अस्त्र में ध्यान करके गरूड़ मुद्रापूर्वक जग व्यापक क्षिप स्वाहा रूप गरूड़ के पांचो वर्णों के भये आत्म स्वरूप का ध्यान करे। इसप्रकार पूर्ण सकली करण की क्रिया होती है। इदानीं रक्षा गर्भा स्तुति माह । अब रक्षा स्तुति का वर्णन करते हैं। 959595969 १२२ P550969695959P
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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