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SHR5RISTRISPISOTE विधानुशासन 915125ICISTRISRISOISS
बाहूभूषणं संकल्पमध्यमया स्पर्शःचतुवार स्वाकारं मुच्चार्यताग्रीवादि ललाटपर्यंत वायुमंडलंन्यस्य तत्रस्थितनागदस्य कर्णपुरंपरिकल्पानामिकया स्पर्शःचतुवार हाकारं मुच्चार्यता ललाटादि मस्तका पर्यतं मंडलं न्यस्य तत्र स्थित नाग द्वस्य तत्र मुकुटाभरकणं परिकल्प कनिष्टया स्पर्शःकरणीयः पश्चात उंहुं सिर सिखू हदि उँका स्तनयो पुनःक्षिकारं हृदो पकारं मुखे उंकारं शिरसि उंवं नेत्रयोश्च संचित्य स्वाकार त्रोणसन्नाह उंकारेण शीर्षके स विसर्ग हकारेण स्त्र्य च कृते कृते गरूड मुद्रा पूर्वकं जगद्व्यापकं पंचवर्ण गरुडात्मकमात्म स्वरूपं ध्यातव्यं एवं परिपूर्ण सकलीभवति:
स्तोत्र टीका पृथ्वी मंडल जलमंडल अग्नि मंडल वायु और आकाश मंडल के योग के अंदर के कोनों को चमकाते हुये नागेन्द्र तथा उनके मस्तक और हृदय की मणियों पंच शून्य 'स्वा लां ह्रीं सुरसंसः' और हर हुंहः से पूज्य तथा उदय होने वाले शरीर की रक्षा करने वाले तथा समस्त लोक से बंदनीय चरणयुक्त भगवान पार्श्वनाथ मेरी रक्षा करे।
बृहत टीका उपरोक्त पांनो मंडल इस एका, फे में उनके अन्दर के कोनों में योग्य बीज लगे हुए हो । अब उन पांचों मंडलों का वर्णन किया जाता है। पृथ्वी मंडल चौकोर तथा दो वजों से बना हुआ होता है। उसके बीच में रहने योग्य बीज क्षि तथा कोणों में रहने योग्य बीज लकार हैं। जल मंडल कलशाकार होता है उसके मुखपर कमल पत्र का चिन्ह होता है । मुख में वं और तली में पं बीज से युक्त होता है। इसके बीच में पं और कोणों वं लगाना चाहिये। अग्निमंडल त्रिकोण होता है। इसके बाहर के कोणों में स्वस्तिक का चिन्ह होता है । इस अग्नि के समान जलते हुवे अग्निमंडल के बीच में ई और कोणों में रं बीज लगाना चाहिये। वायुमंडल गोमूत्र के समान गोलआकार वाला बाहर से बिंधे काले रंग का होता है। उसके बीच में उचित बीज रया होता है । तथा उसके कोणों में यं बीज लगता है। आकाश मंडल आकाश के आकार याला आकाश के वर्ण वाला पीले श्वेत सुनहरे और नीले इन्द्र धनुष के समान होता है । जैसा कि गरुड़ अध्याय में वर्णन किया जायेगा इसके बीच तथा कोण का ह बीज है। फिर यह मंडल उस मंडल के स्वामी नागेन्द्रो से युक्त हो, जो यह है । पृथ्वी मंडल के स्वामी वासुकि
और शंखपाल होते हैं यह क्षत्रिय लाल रंगवाले चावलों की सी गंध वाले सिर पर वन (सरलरेखा) के चिन्हवाले और पृथ्वी विषसे युक्त होते हैं। जल मंडल के स्वामी कर्कोटक और पद्मानाग होते हैं। यह क्षुद्रकाले रंगवाले मछली की सी गंध वाले सिर पर मछली के चिन्हवाले और जल विष युक्त होते हैं।
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