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________________ C525YGDED505 Faggotten ESASPSPS2525 अब धरणेन्द्र से नमस्कार किये हुए श्री पार्श्वनाथ को नमस्कार करके पार्श्वष्टक नाम से उत्तम छंदो का वर्णन किया जावेगा। कहते श्री मान इन्द्र नन्दि आचार्य श्री पार्श्वनाथ भट्टारक की मंत्र स्तुति रूप से स्तुति करते हुए हैं । अबनो छंदो से क्रम से १ संग्रह २ सकलीकरण ३ रक्षा ४ स्तोभन ५ स्तंभन ६ निर्विष कर्म ७ आवेषण ८ परविद्या छेदन ९ और शाकिनी निग्रह कर्म का वर्णन किया जाएगा। श्री पार्श्वनाथजी स्तोत्र श्री मन्नागेन्द्र स्फुरित फणमणि द्योतिताशामुरवश्री : ॐ ह्रीं ला ह्राप लक्ष्मी पवन गगन सन्मंत्रदूता परागं (रो ह्रीं ) क्ष्मा चाग्नि प्रतीत त्रिपुर विचिति दष्टात्म वक्षस्थ हंसः ग्रीवा स्पदादि संदर्शिति वियदुदयेः पातुमां पार्श्वनाथः टीका :- पातु रक्षतु कौ सौ पार्श्वनाथः कं मां स्तुति कर्त्तारं किं विशिष्टये सौ भगवान् श्री मन्नागेन्द्रं रूद्रं स्फुरित फणमणि द्योतिता शामुख श्रीः नागानामिंद्रो नागेन्द्रों धरणेन्द्रः श्री सर्वनागधिपत्य लक्षण शंखपाल वासुकि पद्म कर्कोट अनंत कुलिक महापद्म तक्षक जय विजयादयः तेषामाधिपत्य लक्षणा सा विद्यते यस्या सौ श्रीमान सचासौ नागेन्द्रश्च श्री मन्नागेन्द्र तस्य रुद्रा : स्फीताः स्फुरिताः सा टोपाः संतः स्फुरिताश्च ते फणाश्च तेषु मणय स्तैद्यतिता कांति नीता आशा मुखानां दिग्मुरखानां श्री योनि स भगवान तथा भूतः अत्र नागेन्द्र शब्दोपोदानात् तत्संबंधिनो अनंतादि नागा भगवत स्तदाधिपत्य च दर्शितं पुनरपि कथं भूतं ॐ ह्रीं लाव्हा प लक्ष्मी पवन गगन सन्मंत्र दूता परागं क्ष्मा वाखग्नि प्रतीत त्रिपुर विचिति दष्टात्म वक्षस्थ हंसः ग्रीवा स्पंदादि संदर्शित विदुदयः पवनः स्वा शब्दः गगनं हा शब्दः ॐ च ह्रीं चला श्च ह्वाश्च पश्च लक्ष्मीं श्च गगनं श्च एतै वर्णे: म्मिलितं सन शोभनो मंत्र: दूतस्य अपरांगं दूतापरागं दूत पृष्टभागः तत्रक्ष्मा च वायुश्च अग्निश्च क्ष्माग्न चाख्वाः पृथ्वीवाताग्नि मंडलानि प्रतीतिनि मंत्रवाद प्रख्यातानि तानि च तानि त्रिपुराणि च तेषां विचिति न्यासः दष्टस्यात्मा दष्टात्मा तस्य वक्षो हृदयं तत्र तिष्टति यो सौ हंस हंस शब्दः स दष्टात्म वक्षस्थ हंसः ग्रीवायाः गलस्य स्पंदः किं चि त्सफुरणं ग्रीवा स्पंदः स आदि व्ययेषां द्दष्टिं दंत नरव छाया दीनां ते ग्रीवा स्पंदादयः वियत् असंग्रह उदयः संग्रहः 95959595959594 ११५ P59595959595
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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