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ASTRISTM5RISIONSIDE विधानुशासन ISI055015015015015 इस प्रकार उन पाँचों मंडलों का कनिष्टा आदि अंगुलियों में कनिष्टा से आरंभ करके अंगुठे तक पांच बार न्यास करे किसी अंग में किसी बीज या मंत्र के ध्यान करने को न्यास कहते हैं।
एक बार स्मरेबीजं हत्फणमणि पन्नगान कवच त्रिता पंच सून्यान्टंगलिषु कमात्
॥६॥ उंगुलियों में क्रम से एक बार हृदय मणि बीज फण मणि बीज नाग तीनों कवच और पांचो शून्यों का ध्यान करे।
स्वां लां ह्रीं प्रथम वर्म सरसंसः द्वितीयाकं, हरहुंहः तृतीयं स्यादेतानि कवच त्रयं
॥७॥ स्वां लां ह्रीं प्रथम कवच हे सरसुंसः दूसरे कवच है और हरहुंहः तीसरा कवच है इसप्रकार यह तीनो कवच है।
ईवा यां क्षां आं लां मां रांॐ ह्रीं च हणमणीयः स्युः
गंधं जी झी कां रवां चों छों छीं हूं तूंच फ ण मणयः ई वां यां क्षां आं लां मां रां ह्रीं यह हृदय मणिया है। गं घं जी झी का खां चो छों हूं धूं यह फण माणिया है।
स्युः शंस्यपाल वासुकि सरोज ककॉटिकारस्य कुलिकानंता:
तक्षक महातक्षक तथा जय विजयाश्च द्वंद्व मुर्वरादि भुजंगाः॥९॥ शंखपाल तथा वासुकि सरोज और ककेटिक कुलिक तथा अनंत तक्षक महातक्षक तथा जय और विजय यह पृथ्वी आदि के दो दो के क्रम से जोड़े हैं।
अयमेवं विध्य हस्तः समस्तविष निग्रहं सं स्पर्श नादिभिः कुयात्सर्व भूतं ग्रहापहः
॥१०॥ इन मंत्रों को इसप्रकार हाथों आदि में लगाकर विष वाले पुरुष को छूने आदि से सब विष तथा सभी भूत और ग्रह नष्ट हो जाते हैं।
पश्चाद्विहित दिग्बंध: सकलीक्रिययानया श्रुद्धोस्टमूलमंत्र स्थ कुर्यादाराधन त्रट
॥११॥ इसके पश्चात सकली करण से दिशा बंधन करके शुद्ध होकर उपरोक्त मूल मंत्र तीन बार पढ़े। CASIONSIOSD15035100510११० PHOTSIO1512350SIRTISITIES