________________
CISIOTSPIRICISIOISIOF विधानुशासन DISTRICISCISIOTECISI
विविध माणिक्यकिरण कवलित दशदिग्वलटीः सवर्ण निर्माणैः
गमणा गमणे प्रभुतिभिभागैः सप्तभिः कमात्तुंगै ॥१२॥ इसके पश्चात अनेक प्रकार के माणिक्य आदि रत्नों का किरणों से युक्त ऊँचे ऊँचे सात परकोटो से शोभित समवशरण मंडल की कल्पना करे । उन पर कोटों की दिवालों के वलय दशो दिशाओं में सोने के बने हुवे हो और उनमें जाने तथा आने आदि के मार्ग बने हैं।
उप शोभितस्य निरिवल त्रुिभवन शरासन स्टा समवशरणस्य अध्यासीनो मध्ये गंध कुटी मंडपं जगद्वंटाः ॥ १३ ॥
श्री मान जिनः स्वयंभूरष्ट महाप्राति हार्य परिवारः
गणनायकै: सुरेन्द्रेः सवै संस्तूय माणगुणाः ॥१४॥ ऐसे तीन लोकों के धनुष बाण के समान समवशरण के बीच में गंध कुटी के मंडप के अन्दर समान
ना करने बोर: आठों प्रातिहार्य से युक्त गणघरों और सब देवताओं के इन्द्रों से स्तुति किये जाते हुये श्री मान स्वंयभू (ब्रह्मा) जिनेन्द्र भगवान का ध्यान करे।
भास्वन मरकत हरितं व पर्दधद्दोष धात मल रहितं,
श्री वृक्षा द्यष्टोतर सहस शुभ लक्षणक्षुणं ॥१५॥ उन भगवान की चमकती हुई मरकत मणि के समान हरा शरीर धारण किये हुवे अष्टादश दोष सातों धातुओं और सबप्रकार के मल रहित श्री वृक्षा इत्यादि एक सो आठ हजार उत्तम उत्तम लक्षणों से युक्त ।
चरमांते च चतुर्मुख परमेष्ठी नष्ट धाति कर्म मलः
रक्षतु दुसवा पापात् सर्वानपि करूण्या शरीर भतः ॥१६॥ उत्तम चरम शरीर को धारण किये हुये चार मुख युक्त परमेष्ठि स्यरूप चारों घातिया कर्मो के मल को नष्ट किये हुवे ध्यान करेगा और उनसे मन ही मन में प्रार्थना करे कि "हे भगत्यान आप कृपा करके सब शरीर धारियों को दुःख रूप हानि से रक्षा कीजिये।"
धरेणन्द्रेण च देव्यापद्मावत्या च वंद्य मानाहिः
श्री पार्श्वनाथ देवोध्यातव्यो मूल मंत्रै स्वे ॥१७॥ फिर धरणेन्द्र और देवी पद्मावती से सेवित चरणवाले श्री भगवान पार्श्वनाथ के मूल मंत्र यंत्र में ध्यान करें। CSPECISCESCSRICA १११ PISTRICISCIECIACISCES