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________________ CT500501501501505 विधानुशासन 3150150510151215105 जपोऽस्य सर्वमप्यर्थ साधयेदभि वांछितं विनिहंति च नि:शेष मभिचारोंद्रवंभयं अभिषे को गव्यै क्षीरतुर त्वकषाय सलिला तोयैसिंजप्तः क्षुद्रग्रह हद्भवेद मुना ॥४॥ इस मंत्र का जप सब इच्छा किये हुवे प्रयोजनों को सिद्ध करता है और सब मारण आदि अनुष्ठानों से पैदा हुये भयों का नष्ट करता है। उनका भगवान का गाय का दूध अथवा दूधवाले वृक्षों कीछाल के बनाये हुये जल अथवा केवल जल से अभिषेक करके जप करने से सब क्षुद्र ग्रह नष्ट हो जाते हैं। ॥१॥ अज शक्ति लाह्यापल बीजानि क्ष्मी ततश्च सोमसुधे कुरू स्वाहे त्योषः स्यान्मंत्रः श्री पार्श्वनाथस्य मंत्रोद्धारः ॐहीं ला व्ह:पः लक्ष्मी श्वी क्ष्यी कुरूस्वाहा मंत्रोयं यष्टितोऽजेन शक्या षोडश भिःस्वरैः स मंत्राष्टाब्ज पत्रैश्च मूलयंत्र मह स्मृतं ॥२॥ श्री पार्श्वनाथ स्वामी का मंत्र है अज (3) शक्ति (ही) ला हःप लक्ष्मी बीज सोम (इवीं) सुधा (श्ची) खु और स्वाहा इस मंत्र को अज (3) और फिर शक्ति (ही) से वेष्टित करके फिर सोलह स्वरों से वेष्टित करे इसके पश्चात बाहर आठ दल कमल बनाकर उसके प्रत्येक दल में मूल मंत्र को लिखे। कवचत्रितयोप्रेतं टोयं मंडल पंच , हत्फणामणिसंयुक्त तत्तन्नागाभिवेष्टितं |३|| फिर आगे लिखे तीन कवचों सहित पृथ्वी आदि पांचो मंडलों का ध्यान करे जिसमे आगे लिखी हुई हृदय मणि और फणामणि लगी हुई हो और दो नाग उनके ऊपर हैं। आजानुनाभि हकंठ मस्तकं वं व्यस्तकमात् स्यादारोहावरोहाभ्यां पंच कृत्यः कमोत्कमात् ॥४॥ इन यंत्रो का क्रम से घुटनों से लेकर नाभि हृदय कंठ और मस्तक में चढ़ावे और उतारे इससे क्रमशः पांच बार न्यास करें। कनिष्टायंगुली ष्यंतादम्मंडलपंचकं कनिष्ट कायाआरभ्य ज्येष्टांतवार पंचकं STSICISCIETOISTRISTOISE १०९ PISCES100505125501555
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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