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________________ S50521STRISTOTRE विधानुशासन 95251055DISTRISION । चतुर्थ अध्याय अथ सामान्य मंत्राणां वक्ष्येत साधन क्रमः गदीटांतेऽद्भुतया शक्त्या सुबहुनि फलानियाः ॥१॥ अब सामान्य मंत्रों का साधन क्रम उनकी अद्भुत शक्ति से प्राप्त होने वाले बहुत से फलों सहित वर्णन किया जावेगा। प्रतिमंत्रं सकली कति रूपचाराः पंच साधन विधानां फलमप्प दिश्यते प्रायेना स्मिन समुद्देशे ॥२॥ इस समुद्देश में प्रत्येक मंत्र का सकली करण उपचार मंत्र साधन विधान और फल का वर्णन किया जावेगा। कथितं परिभाषायां लक्षणं सकलीकते: पंचानामुपचाराणां शेषयोर्लक्षणं ब्वे ॥३॥ सकली करण की परिभाषा का लक्षण पीछे तीसरे समुदेश में कह आये हैं अब बाकी पाँचो उपचारों का लक्षण कहा जाता है। साधनं जप होमादि तत्र तत्रोपदर्शिताः सिद्भया विद्यया मंत्री पदवाप्रोति तत्फलं ॥४॥ प्रत्येक मंत्र का जाप और होम आदि का वर्णन उस उस मंत्र के वर्णन के साथ साथ कर दिया गया है। उन मंत्रों के सिद्ध होने से मंत्री निश्चय से उनके फल को पाता है। ॐनमो भगवते चन्द्र प्रभजिनेंद्राय चंन्द्रेद्र महिताय चंद्रकीर्तिमुख रंजिनी स्वाहा॥ चन्द्रप्रभ जिनस्यास्ट सरच्चंद्र समुद्यतेः मंत्रोऽनेक फलः सिद्धि मायात्यज्युत जापतः ॥१॥ तमग्रे दक्षिणे वामे पृष्टे च सं जपेत कमात् यंद्यमानं जिनं प्यायेत् शकाळ श्री ढुंचक्रिभिः ॥२॥ शरदकालीन चन्द्रमा के समाज कांतियाले श्री चन्द्रप्रभु भगवान का यह मंत्र दसहजार जप से सिद्ध होकर अनेक फल देता है। इस मंत्र का क्रम से भगवान के आगे दाहिने बायें और पीछे जप करे फिर उन भगवान का ध्यान इंद्र सूर्यलक्ष्मी चन्द्रमा और चक्रवर्ती रूप से ही करें। CORDI510150150150150 १०८ PSIOSDISIONEDISCISION
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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