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________________ महान वामेऽजितो ज्योति रितो जिष्णुः कवि मुनिः शंभु विश्वो विभुर्योगी वरदो विदितः शुभः सत्योच्चत स्थाष्णुर वारीरांठ्यः देवो गुरूशांति। र भी र पायः श्रेयान् सुधी'नेंमिर पैंण आटौं: पूज्यः पुमानभुष्ण रमोय आप्तौ नित्यःपुराणो विमलो विविक्तः पार्थो गणेशःपरमः स्वयंभूः (क्रमेण संज्ञाश्च महाक्षराणां) विश्धो महात्मा प्रणिधिश्च्युतेशः महान(अ) वाम (आ) अजित (इ) ज्योति(ई) इति (उ) जिष्णु (ऊ) कवि(झ) मुनि (ऋ) शंभु (लु) विश्व (ल) विभु (ए) योगी (ऐ) वरद (ओ) विदित (औ) शुभ (अ) सत्यः (अः) चल (क) स्थाष्णु (ख) अव (ग) अरि (घ) आदय (ङ) देव (च) गुर (छ) शांति (ज) अभि (झ) पाय (अ) श्रेयान (ट) सुधी (ठ) नेमि (ड) अघ (3) अवार्य (ण) पूज्य (त) पुमानाय) भूष्णु (द) अमोघ (ध) आप्त (न) नित्य (प) पुरा तिमल !! निटिशा भाग म) शाय) परम (२) स्वयंभू (ल) विश्व(ब) महा (श) आत्मा (ष) प्राणिधि (स) अच्युतेष (ह) यह क्रमशः महाअक्षरों की संज्ञायें हैं। इत्याष्ये विद्यानुशासने अशेष परिभाषा विद्यानामः तृतीयः समुद्देश्य: इसप्रकार विद्यानुशासन में अशेष परिभाषा विद्या नामक तृतीय अध्याय पूर्ण हुआ। CRICROICKETCRICISTOTRICA १०७ PRICTSTOTRIOTICKETECTREIES
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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