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________________ 959596959 विधानुशासन 959595959595 त्रियां मंत्र जपेत्सव तथैवांतेपुनस्त्रिधा सकृत्साध्यं भवेन्मध्येत द्वियांतेसर्वतोमुखं ॥ २४ ॥ जिसमें आदि और अन्त में तीन तीन बार मंत्र जपा जावे और नाम बीच में एक ही बार है। उसे सर्वतोमुख कहते हैं। सर्वोपसर्ग शमनं महामृत्यु विनाशनं सर्वसौभाग्य जननं मृतानाममृत प्रदं ॥ २५ ॥ यह सब उपसर्गो को शांत करने वाला, महामृत्यु को नष्ट करने वाला, करने वाला और देवताओं को भी अमृत देने वाला है। आदौ मंत्र ततो नाम पुनमंत्रं समादिशेत एवमेव त्रिधा कृत्वा भवेद्युक्तिं विदर्श्वितं ॥ २६ ॥ जिसमें आदि में मंत्र फिर नाम और फिर मंत्र इस प्रकार तीन तीन बार किया गया हो उसे विदर्भ कहते हैं । सर्व व्याधि हरं प्रोक्तं भूतापरमार मर्द्दनं एकैक साध्य वर्णतु कृत्वा मंत्र विदतिं सर्वसौभाग्य को उत्पन्न ॥ २७ ॥ यह सब व्याधियों को नष्ट करने वाला, भूत और (मृगी) रोग को दूर करने वाला है। जिसमें साध्य के नाम के एक एक अक्षर को मंत्र के साथ विदर्भित किया जाये। पूर्व वत्कथितं वश्यार्धते च ते प्रकल्पयेत् विदर्भग्रंथितं नाम मंत्र लक्षण मत्तमं ॥ २८ ॥ सर्व कर्मकरं प्रोक्तं सर्वैश्वर्य फल प्रद एवमेते प्रयोगांस्युः सिद्धा मंत्रस्य सिद्धिदां अथ अक्षर नामानि पहिले के समान आदि और अंत में प्रयोग किया जावे उसे विदर्भ ग्रंथित कहते हैं। यह सब कार्यों को करने वाला और सभी ऐश्वर्य के फल को देने वाला है यह मंत्र की सिद्धि देने वाला सिद्ध प्रयोग है । अब अक्षरों के नाम कहे जाते हैं। 2525252525PSP: ‹•; PSRS25E525252 ॥ २९ ॥
SR No.090535
Book TitleVidyanushasan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMatisagar
PublisherDigambar Jain Divyadhwani Prakashan
Publication Year
Total Pages1108
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari & Religion
File Size24 MB
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